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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/५९२

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५६४ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय हमें प्रत्येक स्त्री और पुरुषतक पहुँच सकना चाहिए, और उन्हें कांग्रेसकी सदस्यताकी बही में अपना नाम लिखानेका अवसर देना चाहिए। समझदार बालकों तथा बालिकाओं- को भी तिलक स्मारक स्वराज्य कोषमें चन्दा देनेका अवसर दिया जाना चाहिए, और प्रत्येक परिवारमें चरखेका प्राणप्रद सन्देश पहुँचाया जाना चाहिए। निर्धनसे-निर्धन प्रान्तको भी अपने हिस्सेके कार्यक्रमको पूरा करनेकी अपनी सामर्थ्य में सन्देह नहीं करना चाहिए। मैं समझता हूँ, उड़ीसा सबसे निर्धन प्रान्त है । मैंने वहाँके कार्यकर्त्ताओंसे पूछा कि क्या वे अपने हिस्सेका भार सँभालेंगे। उन्होंने हामी भरी। और जब जगत्के नाथ, जगन्नाथका आसन ही उड़ीसामें है, तो उनके लिए हिचकिचानेकी आवश्यकता भी क्या थी? वे अपने हिस्सेका धन, अगर और कुछ न बन पड़े तो, पुरी आनेवाले तीर्थयात्रियोंसे, साथ ही सम्पन्न महन्तों और पंडोंसे भी एकत्र कर सकते हैं । यदि उनको ठीक ढंगसे समझाया जाये, तो मुझे लगता है कि वे खुशीसे चन्दा देंगे । किन्तु एक ही बड़े स्थानपर हमारी थैली भर जाये, इसकी अपेक्षा हमें अपनी आशा गरीबोंकी पाई- पाईपर अधिक केन्द्रित करनी चाहिए। साखीगोपालमें हजारों अत्यन्त निर्धन लोगोंको जब मैंने पाइयों और पैसे देकर अपनी जेबें खाली करते देखा, तब मुझमें जितने विश्वास और जितनी आशाका संचार हुआ, उतना पहले कभी और किसी दृश्यसे नहीं हुआ था । बिहारके लोग तो मुट्ठी-मुट्ठी भर अनाज वगैरह भी ले रहे हैं । यदि ऐसे दानको स्वीकार करने तथा उनका उपयोग करनेके लिए ठीक-ठीक संग्रह केन्द्र हों, तो एक करोड़ रुपया बिना किसी अड़चनके जमा हो जाना चाहिए। --- मेरा सुझाव है कि कार्यकर्त्तागण कारीगरोंके सभी वर्गोंके मुखियोंसे मिलें । हम चाहते हैं कि इस आन्दोलनको बढ़ई, लुहार, धोबी, राज, भंगी-चमार, चमड़ा कमाने- वाले • गरज यह कि सभी वर्ग के लोग समझें और इसमें भाग लें । स्वराज्यकी आवश्य- कता ठीक-ठीक समझनेके लिए उन्हें किसी स्कूलमें पूर्व प्रशिक्षणकी आवश्यकता नहीं है । स्वराज्य और चरखेका अभिन्न सम्बन्ध वे सरलतासे समझ जाते हैं। हमारे वर्त- मान जातीय संगठन वास्तवमें पेशोंपर आधारित संगठन हैं; इनके होते हुए हमें उन अधिकांश पुरुषों और स्त्रियोंतक पहुँचने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए, जो इन महत्वपूर्ण संगठनोंके सदस्य हैं। यह भी याद रखना चाहिए कि एक ही कामके लिए -- संघर्षके साधन, अर्थात् चरखे तैयार करने और वितरित करनेके लिए हमें जन और धन दोनोंकी आवश्यकता है। हमें इस वर्षके भीतर विदेशी कपड़ेका पूर्वरूपसे बहिष्कार कर देना चाहिए, बन सके तो आगामी जुलाईके अन्तसे पहले ही । एक करोड़ रुपया और बीस लाख चरखे, यह कांग्रेसका न्यूनतम लक्ष्य है। इसमें वे चरखे नहीं आते जो गत ३१ दिसम्बरसे पहले भी काममें लाये जा रहे थे। हमें मोटे किस्मके वस्त्रमें प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति ६ पौंड़ कपड़ा चाहिए। अतः हमें राष्ट्र के लिए प्रति वर्ष १ अरब ८० करोड़ पौंड कपड़ा चाहिए। यदि सालमें कामके कुल ३०० दिन मानें, और यदि एक तकुएसे दिनभर में आधा पौंड अर्थात् सालभर में १५० पौंड़ सूत निकले, तो इतने परि- १. उड़ीसाका एक गाँव, जहाँ गांधीजी मार्च १९२१ के आखिरी सप्ताह में गये थे । Gandhi Heritage Portal