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भाषण: विद्यार्थियोंकी सभा, इलाहाबादमें

तो भी बुरा नहीं।’ परन्तु हमारी हुकूमतको तो खुदाका ऐसा डर भी नहीं रहा। उसे यह खयाल नहीं आता कि खुदाके हाथों मर जाना ठीक रहेगा। वह तो खुदाको घोलकर पी गई है। उसका खुदा तो उसका तकब्बुर, उसकी दौलत और उसकी दगा है। यूरोपीय संस्कृति शैतानियतसे भरी है। परन्तु इसमें भी अंग्रेजी हुकूमत सबसे अधिक शैतानियतसे भरी है। अबतक मैं यूरोपमें अंग्रेजी सल्तनतको कमसे-कम खराब मानता था; अब मुझे इतमीनान हो गया है कि इसके जैसी खुदाको भूली हुई कोई और हुकूमत नहीं है। इस हुकूमतकी सेवा में नहीं करना चाहता। मैं इसके आश्रयमें एक क्षण भी नहीं रहना चाहता।[१]

आपको मेरे वचनोंके बारेमें सन्देह हो, आपको इस सरकारमें मेरी तरह बुराई दिखाई न देती हो तो आप बेशक अपनी पाठशालाओं में पढ़ते रहें। परन्तु यदि आप मेरे विचारके हैं, तब तो इस हुकूमतकी पाठशाला में ‘गीता’ पढ़ना भी व्यर्थ है। हमें गुलाम बनाकर रखनेवाली सरकार हमें महलमें रखे और उसमें ‘गीता’ पढ़ाये, डाक्टरी, साइंस, इंजीनियरी सिखाये तो भी क्या वह सब सीखा जा सकता है? मैं कहता हूँ ‘नहीं’, क्योंकि इस सारी शिक्षामें जहर भरा है, यह सारी तालीम हमें और पक्का गुलाम बनाने के लिए है। हमारी लड़ाई धर्मकी है, सरकारकी अधर्मकी है। जो सरकार माइकेल ओ'डायर[२]-जैसे कर्मचारीके अपराध जानकर भी उसका पक्ष लेती है, डायरकी[३] हैवानियत जानकर भी उसके अन्यायको केवल विचार-दोष मानती है, उस सरकारकी मदद कैसे ली जाये अथवा उसके साथ सम्बन्ध कैसे रखा जाये? उसके साथ सम्बन्ध रखना अधिक हैवान बनने और ज्यादा पक्का गुलाम बननके बराबर है।

आप लोग यह प्रश्न मुझसे बिलकुल न करें कि मैं आपके लिए क्या-क्या करूँगा। में आपको सरकारकी गुलामी छोड़कर मेरा गुलाम बन जानेको नहीं कहता। यदि आप मेरे गुलाम बनना चाहें तो फिर मुझे आपसे कोई वास्ता नहीं। आपमें अपना पेट भरनेकी, कोई न कोई मेहनत मजदूरी करके अपने माता-पिताका पोषण करनेकी ताकत न हो तो आप स्कूल-कालेज हरगिज न छोड़ें। वैसे आपके लिए व्यवस्था करना हमारा काम है; और हम यथासम्भव व्यवस्था जरूर करेंगे। परन्तु भारतका वातावरण इतना बिगड़ा हुआ है कि शिक्षक, अध्यापक मुझे पागल तक मानते होंगे और सम्भव है मुझे उनकी मदद न मिले। ऐसे लोगोंकी मदद मैं चाहता भी नहीं

  1. लीडर, २-१२-१९२० की रिपोर्ट में यहाँ कुछ वाक्य और हैं: “इस सरकार द्वारा संचालित स्कूलों में तो गीता और कुरान पढ़ना भी हराम है। मेरा विश्वास है श्री लॉपड जॉर्ज और लार्ड चैम्सफोर्ड दोनों ही हमें धोखा दे रहे हैं। अगर वे चाहते तो टर्कीपर लादी जा रही संधिको रद करा सकते थे। किन्तु वे वैसा करना नहीं चाहते। वे अच्छी तरह जानते हैं कि ओ'डायर और डायर दोनों निश्चित रूपसे अपराधी हैं, लेकिन वे उन्हें सजा देना नहीं चाहते। मैं तो ऐसी सरकारके साथ कदापि सहयोग नहीं कर सकता।”
  2. पंजाबके लेफ्टिनेंट गवर्नर, १९१३-१९१९।
  3. रेजिनाल्ड एडवर्ड हेरी डायर (१८६४-१९२७); अमृतसर क्षेत्रके कमांडिंग ऑफिसर जिन्होंने जलियांवाला बागमें एकत्र शान्त जनतापर गोलियाँ चलानेका हुक्म दिया था।

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