पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 2.pdf/१०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८१
भाषण : मद्रासकी सभामें

उठने नहीं देगी। सच बात तो यह है कि उन्हें अधःपतनकी ओर जाने में सहारा दिया जा रहा है। ऐसी परिस्थितियोंमें मैं आपसे नम्रतापूर्वक अनुरोध करता हूँ कि अगर नया-कानून बदला या रद न किया जा सके तो आप नेटालको गिरमिटिया मजदूर भेजना स्थगित करने की हमारी प्रार्थना का समर्थन करें।

स्वाभाविक है, आप जानने को उत्सुक होंगे कि भारतीयोंके साथ गिरमिटकी अवधि काटते समय कैसा व्यवहार किया जाता है। बेशक, वह जीवन किसी भी हालतमें शानदार तो हो नहीं सकता। परन्तु मैं नहीं समझता कि दुनियाके दूसरे भागोंमें इन्हीं परिस्थितियोंमें रहनेवाले भारतीयोंकी अपेक्षा नेटालमें उनकी स्थिति ज्यादा खराब है। इसके साथ-साथ, उन्हें भी, निश्चय ही, भीषण रंग-द्वेषकी विपत्ति तो भोगनी ही पड़ती है। यहाँ मैं उसका संकेत-मात्र करके जिज्ञासुओंको 'हरी पुस्तिका' पढ़ने की सलाह ही दे सकता हूँ। उसमें इसकी अधिक विस्तृत चर्चा की गई है। नेटालकी कुछ जायदादोंमें आत्महत्यासे अनेक शोचनीय मृत्युएँ हुई हैं। वहाँ किसी भी गिरमिटिया भारतीयके लिए दुर्व्यवहारकी बिनापर अपना तबादला करा लेना बहुत कठिन है। प्रत्येक गिरमिटिया भारतीयको स्वन्तत्र हो जानेपर एक मुफ्त रिहाईनामा दिया जाता है। जब कभी भी मांगा जाये, उसे यह रिहाईनामा दिखाना पड़ता है। इसका मंशा काम छोड़कर भागनेवाले गिरमिटियोंको पकड़ना है। इस प्रणालीका अमल गरीब स्वतन्त्र भारतीयोंके लिए बड़ा सन्तापकारक है। और अकसर शिष्ट भारतीयोंको बड़ी अप्रिय स्थितिमें डाल देनेवाला होता है। अगर बेतुकी द्वेष-भावना न होती तो सचमुच यह कानून कोई कष्ट न देता। प्रवासियोंका संरक्षक अगर तमिल, तेलुगु और हिन्दुस्तानी जाननेवाला और गिरमिटियोंके साथ सहानुभूति रखनेवाला कोई प्रतिष्ठित सज्जन—सम्भवतः भारतीय—हो तो निश्चय ही उनके जीवनकी साधारण कठिनाइयाँ बहुत घट जायेंगी। अगर किसी भारतीय गिरमिटियाका रिहाईनामा खो जाये तो उसे उसकी नकलके लिए तीन पौंडकी रकम देनी पड़ती है। यह अनुचित रूपसे पैसा ऐंठने की प्रणालीके अलावा कुछ नहीं है।

नेटालमें रातको ९ बजे के बाद घरसे निकलने के लिए प्रत्येक भारतीयको अपने पास एक परवाना रखना पड़ता है। अगर यह परवाना न हो तो उसे पुलिसकी कालकोठरीमें बन्द रखा जाता है। यह नियम खास तौरसे मद्रास-प्रदेशसे गये हुए सज्जनों के लिए बहुत सन्तापजनक है। आपको जानकर हर्ष होगा कि अनेक गिरमिटिया भारतीयोंके बच्चे काफी अच्छी शिक्षा प्राप्त करते हैं और वे आम तौरपर यूरोपीयोंकी पोशाक पहनते है। उनका वर्ग बड़ा नाजुकमिजाज है। फिर भी, दुर्भाग्यवश, ९ बजे रातके नियमके अन्तर्गत उस वर्ग के लोगोंके ही गिरफ्तार होनेकी सबसे ज्यादा सम्भावना होती है। नेटालमें यूरोपीय पोशाक पहनने से किसी भारतीयकी लियाकत जाँच ली जाये और उसे सताया न जाये, सो बात नहीं है। बल्कि स्थिति इससे उलटी है। मेमन लोगोंका ढीलाढाला चोगा उन्हें छेड़छाड़से बचा लेता है। 'हरी पुस्तिका' में एक सुखद घटनाका वर्णन किया गया है। वह अनेक वर्ष पूर्व डर्बनमें घटित हुई थी। उसके फलस्वरूप डर्बनकी पुलिसने वैसे कपड़े पहने हुए भारतीयोंको रातको ९ बजेके

२–९