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प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको

का कोई उत्साहजनक उत्तर नहीं दिया, फिर भी ये माँगें तो बनी ही हुई है, और इसका क्या ठिकाना कि आज सरकारका झुकाव कुछ कारणोंसे जिन मांगोंको पूरा करने का नहीं है, उनके प्रति उसका झुकाव सदा इसी प्रकारका रहेगा।

अन्तमें प्राथियोंका निवेदन है कि ऊपर जिन घटनाओंका वर्णन किया गया है और जिन प्रतिबन्धक कानूनोंके भविष्यमें बनाये जानेका अनुमान लगाया गया है, उनको ध्यानमें रखकर या तो ब्रिटिश भारतीय प्रजाजनोंकी स्थितिके विषयमें समय। पर नीतिकी एक घोषणा कर दी जाये या ऊपर जिस खरीतेका जिक्र आया है, उसे पुनः पुष्ट कर दिया जाये, जिससे कि नेटाल-उपनिवेशमें बसे हुए सम्राज्ञीके ब्रिटिश भारतीय प्रजाजनोंपर लगी हुई पाबन्दियाँ हटा ली जायें और भविष्यमें कोई नयी पाबन्दियाँ न लगाई जायें। अथवा उनकी ऐसी सहायता की जाये जिससे उनके साथ न्याय हो सके।

और न्याय तथा दयाके इस कार्य के लिए, आपके प्रार्थी अपना कर्तव्य मानकर सदा दुआ करेंगे।

अब्दुलकरीम हाजी आदम

(दादा अब्दुल्ला ऐंड कम्पनी)

और इकत्तीस अन्य

 

(परिशिष्ट क)
नकल

[२५ जनवरी, १८९७]

प्रतिवादके इस सार्वजनिक पत्र द्वारा, जिन किन्हीं लोगोंका इससे कोई सम्बन्ध हो, उन सबको विदित और स्पष्ट कराया जाता है कि आज हमारे प्रभु ईसामसीहके एक हजार आठ सौ सत्तानबेवें वर्षके जनवरी मासके पच्चीसवें दिन, नेटाल-उपनिवेशमें, डर्बनके नोटरी पब्लिक मुझ जान मुअर कुकके सम्मुख और हस्ताक्षरकर्ता गवाहोंकी उपस्थितिमें, इसी बन्दरगाहके तथा इस समय नेटालके इस बन्दरगाहके भीतरी भागमें खड़े हुए ७६० टन या लगभग इतने ही वजन तथा १२० हॉर्सपावरके जहाज 'कूरलैंड' के मास्टर-मैरिमर और कमांडर अलेक्जेंडर मिलने ने, स्वयं आकर और पेश होकर, शपथपूर्वक घोषण करके निम्न बयान दिया :

उक्त जहाज बिक्रीका साधारण माल और २५५ यात्री लादकर गत ३० नवम्बरको बम्बईके बन्दरगाहसे चला था और इसने १८ दिसम्बर, १८९६ को सायंकाल ६ बजकर ३४ मिनटपर इस बन्दरगाहके बाहर लंगर डाला।

बम्बईसे रवाना होने के पहले, इसके मल्लाहों और यात्रियोंका निरीक्षण और गिनती करके उनके स्वस्थ होने और बन्दरगाहकी देनदारियाँ अदा कर चुकने का प्रमाणपत्र इसे दे दिया गया था।