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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

छिपानेसे तो जनताकी कमजोरी ठीक उसी तरह बढ़ जाती है जिस तरह रोगको छिपानेसे रोग बढ़ता है। एक भारतीय दूसरे भारतीयको पकड़े और तीसरा उसे सजा दे, इसमें तो शर्मकी कोई बात नहीं है। हाँ, अगर ऐसा कोई अवसर उपस्थित हो जाये तो यह अवश्य ही हमारे लिए शर्मकी बात है। इसके अलावा जब स्वराज्यकी स्थापना हो जायेगी तब अपराधी भारतीयको एक भारतीय सिपाही ही पकड़ेगा और भारतीय न्यायाधीश सजा देगा । वह शोचनीय नहीं जान पड़ेगा, इतना ही नहीं वरन् वह मान्य होगा और उचित भी जान पड़ेगा। श्री वामनरावने जो उद्गार प्रकट किये हैं वे वर्तमान परिस्थितियोंको देखकर प्रकट किये हैं। पापी पेटकी खातिर नौकरी करनेवाला सिपाही एक निर्दोष भारतीयको पकड़े और उसे वैसा ही भारतीय न्यायाधीश सजा दे--श्री वामनरावने हमारी इसी शर्मका जिक्र किया है और उसे उघाड़कर रख दिया है। लेकिन हम अपने अनुवादमें इस अर्थको अभिव्यक्त नहीं कर पाये हैं, यह बात हमें दुःख देती है । तथापि ऐसे दोषोंको अनिवार्य मानकर हमें सन्तुष्ट रहना है। भाषा और उसमें भी अनुवाद मनुष्यके विचारोंको अभिव्यक्त करनेके लिए कितना अपर्याप्त साधन है, यह हम देख रहे हैं। सच बोलनेकी अपेक्षा सच्चा काम करना ही सच्चा भाषण है। कृत्योंमें विचारोंका जो प्रतिबिम्ब पड़ता है वह भाषणोंमें कहाँसे हो सकता है ? आइये, हम सब श्री वामनरावके कृत्योंका अनु-करण करें और उनके आत्मत्यागमें, उनकी वीरतामें, उनकी निर्भयतामें, उनकी सादगी और निरभिमानतामें उनके सन्देशको पढ़ें ।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, १७-४-१९२१

६. पत्र : नरसिंहराव दिवेटियाको

गोधरा
 
सोमवार, १८ अप्रैल, १९२१
 

सुज्ञ भाईश्री,

मुझे महादेवने खबर दी है कि आपके खुले पत्रका मैंने जो उत्तर दिया है, उसमें मैंने श्री दयाराम गीदुमलजीके सम्बन्धमें जो कुछ लिखा है, उससे आपको दुःख हुआ है?--बहुत ज्यादा दुःख हुआ है । वह वाक्य आपको दुःख देनेके उद्देश्यसे नहीं लिखा गया । वह तो आपके और दयारामजीके प्रति मेरे मनमें जो आदरभाव है उसे व्यक्त करनेके लिए लिखा गया है। दुनिया चाहे जो कहे लेकिन आप दोनों पवित्र हैं, यह बतानेके लिए मैंने उक्त वाक्य लिखा है तथापि अगर आपको बुरा

१. १८५९-१९३७; गुजराती कवि और साहित्यकार; एलफिन्स्टन कालेज, बम्बई में गुजरातीके प्रोफेसर ।

२. देखिए खण्ड १९, पृष्ठ १८१-८५ ।