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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३८८

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१६८. पंच महायज्ञ

यज्ञके अनेक अर्थ हो सकते हैं। हिन्दुस्तानमें गृहस्थ, संसारीके लिए पाँच यज्ञ आवश्यक हैं: चूल्हा, मूसल, चक्की, घड़ा और चरखा। इनमें से जिस घरमें जो चीज जितनी कम होगी उतनी ही कम बरकत होगी । लेकिन इन यज्ञोंपर दृष्टिपात करनेसे आप देखेंगे कि वस्तुतः दो ही यज्ञ हैं और बीच के तीन यज्ञ गौण हैं । चक्की, मूसल और घड़ा ये चूल्हे के ही अंग हैं। जिसके यहाँ चक्की अथवा मूसल नहीं चलता उसका चूल्हा मन्द हो जाता है, उसका तेज कम हो जाता है, लेकिन चूल्हा तो जलता ही है। लेकिन जिसके यहाँ चरखा नहीं चलता उसके यहाँसे तो एक मुख्य अंग ही चला गया, उसे तो पक्षाघात हो गया । अन्न अथवा वस्त्र के लिए जो यज्ञ न करे उसे अन्न अथवा वस्त्रका अधिकार ही नहीं है। ऐसा रिवाज होना चाहिए कि जो चूल्हा न जलाये वह खाना न खाये, जो चरखा न चलाये वह कपड़ा न पहने। लेकिन हमने तो चरखा छोड़नेपर भी वस्त्र न छोड़े । जो यज्ञ किये बिना खाता है वह चोर कहलाता है । वैसे ही जो यज्ञ किये बिना कपड़े पहनता है वह भी चोर है । यज्ञ अर्थात् कुरबानी, यज्ञ अर्थात् आत्मत्याग अर्थात् शारीरिक परिश्रम । जो चूल्हा और चरखा चलाता है वह बुद्धिपूर्वक यज्ञ करता है । जो व्यक्ति ऐसी पोषक मजूरी नहीं करता सो अन्तमें थोड़ी-बहुत कसरत करके अन्नको पचाता है।

अब कदाचित् अधिकांश लोग समझ गये होंगे कि हमने चरखेको छोड़कर कितना पाप किया है। किसी समय हिन्दुस्तानकी महिलाएँ जब यह कोमल किन्तु पोषक परिश्रम किया करती थीं तब हिन्दुस्तान सुखी था, स्वस्थ था, तेजस्वी था । आज हिन्दुस्तान चरखेको छोड़कर दुःखी, रोगी और तेजहीन हो गया है।

चूल्हा, चरखा आदि घरके श्रृंगार हैं। चरखेके जानेके बादसे हिन्दुस्तान में लाखों घर खंडहर हो गये हैं । इस कथनमें कोई अतिशयोक्ति न माने । पाठकका घर भले ही ऐसा न हो । पानीकी तंगीका अर्थ यह नहीं होता कि किसीको पानी ही न मिले। लेकिन होता यह है कि पानी सबको कम, अनेकको बहुत ही कम और थोड़े लोगोंको बिलकुल ही नहीं मिलता । चरखेके अभाव में भी छ: करोड़ घरोंका बहुत अच्छा गुजारा होता है। लेकिन कितने ही घर तो जमींदोज हो गये हैं । उड़ीसा और चम्पारनको ही देखिए। उनके बहुतसे गाँव खण्डहर हैं। डेढ़ सौ वर्ष पहले जिस देशके लोग बारहों महीने किसी-न-किसी प्रवृतिमें व्यस्त रहते थे उनमें से कुछ वर्षोंसे अगर अस्सी प्रतिशत लोग बिना कामके चार महीने बेकार रहते हों तो उस देशका क्या हाल होगा ?

धातु तो दौलतकी निशानी मात्र है, खरा पैसा तो मजूरी ही है । अस्सी प्रतिशत लोग चार महीने बेकार रहते हैं अर्थात् उनकी एक तिहाई शक्ति कम हो गई। वर्षोंसे तीन रुपयेका काम करनेकी योग्यता और इच्छा दोनों ही के बावजूद हिन्दुस्तान के लोग दो रुपयेका काम कर रहे हैं, उनको दो रुपयेका ही काम मिलता है। ऐसा देश