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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/४९७

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औषधि खोजने और उसे प्रयुक्त करनेमें अपनी शक्ति लगायेंगे, वे ही सच्चे सर्जन और डाक्टर बन जायेंगे और जब यह व्यापक व्याधि दूर हो जायेगी तो दूसरी बहुत-सी व्याधियाँ बिना किसी उपचारके ही गायब हो जायेंगी । उसके पश्चात् जो व्याधियाँ शेष रह जायेंगी उनके इलाजके लिए देश पुरुष और महिला चिकित्सक तैयार करनेकी ज्यादा अच्छी स्थितिमें होगा ।

देशी रियासतें

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने कांग्रेसकी परराष्ट्र सम्बन्धी नीति निश्चित कर दी है। अतः हमारी देशी रियासत सम्बन्धी नीतिको निश्चित करनेकी माँग भी रखी गई। यह स्वाभाविक ही था । नागपुर के अधिवेशनमें इस विषयकी स्थल रूपरेखा बनाई गई थी -- - अर्थात् यह बात तय पाई गई थी कि इन रियासतोंके भीतरी मामलोंमें हस्तक्षेप न किया जाये । देशी राज्य खुद भी इससे ज्यादा अच्छी या ज्यादा स्पष्ट बातकी अपेक्षा नहीं कर सकते थे। और अ० भा० कांग्रेस कमेटी तो सिर्फ उस प्रस्ता- वकी सीमाके अन्दर-ही-अन्दर अपनी नीति निश्चित कर सकती है । अ० भा० कांग्रेस कमेटी के कार्यकर्ताओंने बिलकुल उस प्रस्ताव के अनुसार कार्य किया है। वे असहयोगका सन्देश देशी-राज्यों में नहीं ले गये हैं। हाँ, उसके चिरस्थायी, आत्मशुद्धिकारी या आर्थिक भाग इसके अपवाद हैं; और वे बातें तो असहयोगके अलावा भी हितकर ही साबित होंगी। वे क्या हैं -- शराबखोरी छुड़ाना, स्वदेशीका इस्तेमाल करना, हिन्दू-मुस्लिम एकताको बढ़ाना, अहिंसाका अवलम्बन लेना और छुआछूतको मिटाना । अ० भा० कांग्रेस कमेटी तो इन राज्योंके प्रति जबतक वहाँकी प्रजाके साथ अच्छा सलूक किया जाता है, सद्भावना ही रख सकती है। और उसके साथ दुर्व्यवहार किये जानेपर भी अ० भा० कांग्रेस कमेटी लोकमतके सिवा किसी दूसरे बल या दबावका प्रयोग नहीं कर सकती और न करेगी। इसलिए, जब आवश्यकता होती है, राष्ट्रीय दलके पत्र किसी राज्यकी प्रजाके दुख-दर्दकी पुकारपर कड़ी आलोचना करनेमें नहीं हिचकिचाते। एक मिसाल लीजिए। सेठ जमनालालजी और उनके कुछ साथी बीकानेर राज्यमें गये थे । वहाँ वे महज स्वदेशी प्रचारका उद्योग करना चाहते थे । परन्तु राज्यकी ओरसे उनके साथ नादानीका और मनमाना बुरा बरताव किया गया। उसपर पत्रोंमें इसकी बहुत तीखी आलोचना की जाती रही है। यह ठीक है। जो राज्य प्रगतिशील हैं वे अ० भा० कांग्रेस कमेटीसे हर तरह के प्रोत्साहनकी और जो प्रतिक्रियावादी हैं वे अपनी कार्य-प्रणालियों और कार्य-साधनोंकी कड़ीसे-कड़ी नुक्ताचीनीकी आशा रख सकते हैं। इसके सिवा अ० भा० कांग्रेस कमेटी इन देशी राज्योंकी इस अपमानजनक हालत में उनके साथ हमदर्दी रखने के सिवा और क्या कर सकती है ? साम्राज्य शक्तिने अपनी आर्थिक लूट-खसोटकी बाजीमें उन्हें अपना मोहरा बना रखा है। समय-समयपर जो नाजायज और दाव पेंच भरा दबाव उनपर डाला जाता है, उसको रोकनेकी उनमें बहुत ही कम जुरंत है। अतएव उन्हें यह जानना चाहिए कि जन-शक्तिकी बढ़तीका अर्थ है मेरे बताये हुए उस अपमानजनक प्रभावमें कमी ।

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