पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/५२६

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२०२. लोहे के चने सविनय कानून-भंगके लिए गुजरातका सबसे पहले कदम बढ़ाना लोहेके चने चबाने से भी कठिनतर है। फिर भी एक भी तहसील अगर इसमें सफल हो जाये तो स्वराज्य हमारी मुट्ठीमें ही धरा है, मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं । इसका अर्थ यह है कि जो तहसील बीड़ा उठाये उसमें एक सत्याग्रही सेना तैयार हो जाये । मैं पहले कह चुका हूँ कि सत्याग्रही सेनामें औरत-मर्द, जवान-बूढ़े, लूले-लँगड़े, दुर्बल-सबल, हिन्दू-मुसल- मान, पारसी-ईसाई-यहूदी, ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य-शूद्र-भंगी-चमार, सब भरती हो सकते हैं। प्रह्लादकी तरह कोई बालक भी आ जाये तो वह भी दाखिल हो सकता है। और माँ-बाप अपने लड़के-बालोंकी भी भरती करा सकते हैं। यह खासा पचमेल मेला ही है; पर फिर भी यह प्रतिपक्षी सेनाके मुकाबलेमें बहुत ही ज्यादा काम कर सकता है और इसपर खर्च भी [ उसके मुकाबलेमें ] क्या होगा ? इस सेनाके सिपाहियोंमें एक गुण जरूर होना चाहिए - - निर्भयता। उनमें मरनेकी शक्ति होती चाहिए अर्थात् उस सिपाहीमें आस्तिकता होनी चाहिए । — जिन दूसरे गुणोंकी आवश्यकता मैंने बताई है वे सदा आवश्यक नहीं हैं। वे गुण तो सिर्फ आजकी परिस्थितिके ही लिए आवश्यक हैं। फिर भी, यद्यपि इस तरह लिख देना तो आसान है तथापि जबतक मनुष्य उसे समझ नहीं पाता तबतक वह कठिन मालूम होता है। जो तहसील बीड़ा उठाये उसमें जबर्दस्त परिवर्तन होने चाहिए। उस तहसीलके सिपाही एक पल भी व्यर्थ न बैठें। इससे जब युद्ध शुरू होगा तब प्रत्येक सत्याग्रही या ग्रहिणी या तो जेल जानेके लिए किसी जगह सविनय अवज्ञा करते दिखाई देंगे या सूत कातते हुए, खादी बुनते हुए, या रुई धुनकते और कपास लोढ़ते हुए पाये जायेंगे। कोई छिन-भर भी अकर्मण्य नहीं बैठ सकता, फिर चाहे वह धनी हो चाहे भिखारी। सिपाहीगिरीमें धनवान और निर्धनका भेद नहीं रहता। जार्ज पंचम जब जहाजपर काम करते थे तब वे भी औरोंकी तरह जमीनपर सोते थे, बिना दूधकी चाय पीते थे तथा चौकर मिली मोटी रोटी खाते थे । ऐसा ही होना चाहिए । इसलिए जिस तहसीलको तैयारी करनी हो उसे तथा जो तैयार हो गई हों उन्हें भी अपनी तहसीलके गाँवोंका अलग-अलग नकशा तैयार करना चाहिए। उसमें नीचे लिखा ब्यौरा हो : -- १. गाँवका नाम २. पड़ावसे उसका फासला ३. आबादी। इसमें स्त्री, पुरुष, सोलह वर्षके अन्दरके लड़के-लड़कियाँ, हिन्दू, मुसलमान, पारसी, ईसाई, भंगी, चमारकी तादाद बताई जाये । १. देखिए “ परीक्षा ”, १३-११-१९२१ । Gandhi Heritage Portal