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कार्यक्रमको पूरा करनेमें ही लगा देना चाहिए। हमें प्रबलसे-प्रबल उपद्रवकारी तत्त्वोंको भी काबू में करना चाहिए; तब हम शीघ्र ही स्वराज्य स्थापित कर सकते हैं।

चिकित्सा शास्त्रके छात्रोंके बारेमें कुछ और

मैं इस सप्ताह विशाखापट्टमके चिकित्सा-शास्त्र के छात्रोंसे सम्बन्धित पत्र-व्यवहार प्रकाशित कर रहा हूँ । पत्र-व्यवहार लम्बा, पर साथ ही रोचक और शिक्षाप्रद भी है। इससे चिकित्सा अधिकारियोंकी और सरकारकी भी मनोवृत्तिका पता चल जाता है। छात्रोंको कालेजसे निकलनेके अन्तिम आदेश मद्रास सरकारकी सलाहपर या उसकी जानकारीमें दिये गये थे। पाठक इसमें देखेंगे कि पोशाक-सम्बन्धी नियमोंका कड़ाईसे पालन नहीं होता था और टोपियोंको काले रंगमें रँग देने के बाद तो उनपर पाबन्दी लगानेका कोई कारण ही नहीं रह जाता था। किन्तु छात्रोंने खादी पहननेका जो साहस दिखाया, कालेज अधिकारियोंके क्रोधको भड़काने के लिए वही काफी था।' पाठक यह भी देखेंगे कि पोशाक-सम्बन्धी विनियम कितने अपमानजनक हैं। चोटी या गंजे सिरको, जो धर्म और सम्मानका सूचक है, ढकना जरूरी है क्योंकि इससे पाश्चात्य प्रोफेसरोंकी पाश्चात्य रुचिको ठेस पहुँचती है। छात्र हिन्दुस्तानी जूते पहनकर कालेजके अन्दर दाखिल नहीं हो सकते। उन्हें अंग्रेजी जूते पहनने होंगे या फिर नंगे पाँव रहना होगा। इस तरह छात्रोंको कच्ची उम्रमें ही, जब उनके मस्तिष्क ग्रहणशील होते हैं, राष्ट्रीय वेशभूषाको त्यागनेकी शिक्षा दी जाती है । वस्तुतः देशी जूते हिन्दुस्तानकी जलवायुमें अंग्रेजी जूतोंसे कहीं अच्छे होते हैं। उनके खुले होनेसे पैरोंको हवा लगती रहती है, और इसलिए वे सफाई और स्वास्थ्यकी दृष्टिसे बेहतर होते हैं। मोजोंका उपयोग भारतकी गर्म जलवायुमें गँवारू और बिलकुल बेकार है। मोजे पहननेवालोंको मालूम है कि यहाँकी आबहवा में उनके मोजोंसे कितनी बू आने लगती है। यदि हम गुलाम न होते तो इन सब हानिकारक और अनुचित नये तौर-तरीकोंको बिना किसी हिचकके तुरन्त दूर कर सकते थे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २४-११-१९२१

देखिए “टिप्पणियाँ ", १७-११-१९२१ का उप-शीर्षक "बहादुर छात्र" ।