पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/५५०

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय है। हम यह दावा करते हैं कि महासभाके दफ्तरोंमें दर्ज लाखों आदमी -यही क्यों, दूसरे करोड़ों आदमियोंपर हमारा इतना प्रभाव हो गया है कि वे भी हमारे साथ ही हैं। हमारा ऐसा दावा करना उचित ही है। अगर लोग हमारे साथ न हों तो फिर स्वराज्य किसके लिए प्राप्त किया जाये ? अगर लोग सरकारके साथ हों तो क्या उनको बलपूर्वक आजाद किया जा सकता है ? हमारी स्वराज्यकी इस वर्तमान हलचलका, खिलाफत और पंजाबकी हलचलका आधार ही इस बातपर है कि हम लोगोंके दुःख-दर्दको प्रकट कर रहे हैं और उन्हीं साधनोंका उपयोग कर रहे हैं जिन्हें लोगोंने पसन्द किया। इसका अर्थ यह हुआ कि लोग शान्तिके साथ विजय प्राप्त करना चाहते हैं । ५१८ है - असहयोगी हमारे साथ हैं अगर मेरी यह पूर्वोक्त बात गलत हो तो मैंने -- हमने -- बड़ी गहरी भूल की है। अगर हम, शान्तिको सच्चे दिलसे मानने और चाहनेवाले, मुट्ठीभर ही हों तो भी हम स्वराज्य प्राप्तिमें समर्थ हैं। परन्तु उस अवस्थामें हमारा संगठन दूसरे प्रकारसे होना चाहिए। फिर कोई असहयोगी चाहे जेल जाये, चाहे मर जाये, उसके पीछे झुण्ड- के-झुण्ड लोगोंको जेल नहीं जाना चाहिए। यदि सहयोगियोंकी तरह लोगोंमें हम भी अप्रतिष्ठित होते तो हम मनमानी अवज्ञा कर सकते थे। क्योंकि उस अवस्थामें हम पर होनेवाले अत्याचारके कारण उत्तेजित होकर कोई शान्ति भंग न करता । भेद गुजरातमें हम शीघ्र ही जिस सविनय अवज्ञाके मनसूबे बाँध रहे थे, वह सारे हिन्दुस्तान के लिए थी । उस अवज्ञाके बलपर हम खिलाफतको ताकत पहुँचानेकी और स्वराज्य प्राप्त करनेकी आशा रखते थे। अतएव सारे हिन्दुस्तानके लिए उसमें सहमत होने और शान्ति बनाये रखने की जरूरत है। यों स्थानीय कष्टों और दुःखोंके लिए हर व्यक्ति सविनय अवज्ञा कर सकता है, जैसा कि आज चिरला-पेरला और मूलशी पेठामें चल रहा है। उनके साथ हमारी हमदर्दी भी है, और हम उनकी सहायता भी कर सकते हैं। परन्तु यों हमें स्वयं तटस्थ ही रहना चाहिए । अशान्ति बड़ी जल्दी फैलती है। अगर हम चिरला-पेरलाके नामपर बम्बईमें अशान्ति कर बैठे तो चिरला-पेरलाको अधिक कष्ट भोगना पड़ेगा। बड़ी आवश्यकता इसलिए सबसे बड़ी आवश्यकता इस समय हर जगह तत्काल ही शान्ति स्थापित करनेकी है। अगर खुद हमारे मनमें शान्तिकी आवश्यकताको लेकर कुछ शक बाकी रह गया हो तो हम उसे दूर कर डालें। पहले हमें उपद्रवियोंपर काबू पाना चाहिए। वे भी हमारे भाई हैं। हम उन्हें छोड़ नहीं सकते। किन्तु हम उनके हाथमें भी नहीं रह सकते। अगर हम उनकी मर्जीको चलने दें तो हिन्दुस्तानमें स्वराज्य नहीं, गुंडोंका राज होगा। गुंडोंका राज होने देना मानो उनकी और हमारी दोनोंकी मौत है। हमें यह समझ लेना चाहिए कि गुंडोंके राज्यको लोग जरा भी सहन नहीं कर सकते । गुंडोंके राजमें रहनेवाले जानोमालके तात्कालिक नुकसानके भयको अंगीकार करनेके बजाय सरकारके तात्कालिक रक्षणको खुशी-खुशी कबूल कर लेंगे। अतएव हमें चाहिए Gandhi Heritage Portal