खून से लथपथ स्वयंसेवकोंने जरा आगे जाकर फिर स्वदेशीका प्रचार शुरू कर दिया।
एक पत्रमें[१] उन्होंने घटनाका ब्योरा दिया है जिसमें से मैं निम्नलिखित उद्धरण ले रहा हूँ:
दृश्य बड़ा उत्तेजक था। मैं सबसे ज्यादा तारीफ इस बातकी करूंगा कि मार और हंटरकी चोटसे शरीर जगह-जगह कट जानेके कारण घोर पीड़ा होनेकेबावजूद भी स्वयंसेवक अदम्य भावसे और मुस्कराते चेहरोंसे फिर जलूस बनाकर चल पड़े।…
मैंने डिप्टी कमिश्नरसे टेलीफोनपर पूछा कि किसके आदेशसे और किस कानूनके अधीन स्वयंसेवकोंको इतनी बशर्मीसे मारा गया था। उसने कहा कि बुरी तरह पीटे जानेकी उसे कोई जानकारी नहीं है। डिप्टी कमिश्नरका कहना था कि उसने स्वयंसेवकों को तितर-बितर करनेका आदेश दिया था क्योंकि सरकारने राष्ट्रीय स्वयंसेवक दलको भी अवैध घोषित कर दिया था । उसने आगे बताया कि उसका आदेश था कि कमसे कम बल-प्रयोग किया जाये। जब मैंने उसे बताया कि कमसे कम नहीं बल्कि ज्यादासे ज्यादा बल-प्रयोग किया गया है, तो उसने कहा कि वह पूछताछ करेगा। मैंने उससे पूछा कि उसने कानून लागू क्यों नहीं किया और स्वयंसेवकोंको गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया। उसने जवाब दिया कि उसे दूसरा ही आदेश है। वे साधारण स्वयंसेवकोंको गिरफ्तार नहीं करना चाहते।
लाहौर में भी १३ तारीखको स्वयंसेवकोंके साथ इसी प्रकारका व्यवहार किया गया। …उनकी पीठोंपर पुलिस बेटनोंके कुन्दे मारे गये। बादमें रातको दो बजे स्वयंसेवकोंको जत्थों में शहरसे एक या दो मील दूर ले जाकर छोड़ दिया गया। उनके कोट उतार लिये गये। पंजाबकी इस कड़ाके की सर्वोमें इससे ज्यादा अमानुषिक काम और कुछ नहीं हो सकता। …मुझे पता चला है कि पंजाब सरकारने सब जिला-अधिकारियोंको परिपत्र भेजकर कहा है कि स्वयंसेवकोंके जलूस जबरदस्ती तितर-बितर कर दिये जायें; उन्हें गिरफ्तार न किया जाये। ऐसा केवल उन्हें नीचा दिखाने और हिंसा के लिए भड़कानेके विचारसे किया जाता है। अबतक तो जनताने शान्ति कायम रखी है।
पंजाबी जिस बहादुरीसे इन कष्टोंका सामना कर रहे हैं ईश्वर उन्हें जल्दी ही उसका फल देगा। अगर जेल जाने के लिए लोग इसी प्रकार आगे आते रहे और सरकारी जेलोंमें उतने कैदियोंके लिए स्थान न रहा तो हमें आशा करनी चाहिए कि पंजाब में आज जो हो रहा है वह भारत-भरमें होने लगेगा। जान देने और लेनेवाले
- ↑ यहाँ कुछ अंश ही दिये जा रहे हैं।