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उतने किसी के नहीं। उनके सन्देश छोटे और तीखे हैं। वे सीधे उनके हृदयसे निकले हैं। क्या ही अच्छा हो यदि कोई साहसी प्रकाशक इन्हें संग्रह करके पुस्तक रूपमें प्रकाशित कर दे। परन्तु विद्यार्थियोंको दिये गये उनके एक सन्देशके दो वचन यहाँ उद्धृत करनेका लोभ मैं संवरण नहीं कर सकता। वे प्रोफेसर जितेन्द्रलाल बनर्जीको दो सालकी कैद की सजाका समाचार सुननेपर दिये गये सन्देशसे लिये गये हैं। पहला वचन खुद जितेन बाबूके ही जोरदार बयानमें है, जो उन्होंने अदालत में पेश किया था। वह इस प्रकार है:

यदि अपने पूरे आत्मिक बल और जोरके साथ अपने देशभाइयोंके लिए आजादी चाहना पाप है, तो मैंने बेशक बड़ा भारी पाप किया है—ऐसा पाप जो न माफीसे मिट सकता है, न पश्चात्तापसे कट सकता है और मुझे बड़ा हर्ष है कि मुझसे ऐसा पाप बन पड़ा। यदि अपने देश बन्धुओंसे यह कहना गुनाह है कि भाई ये गुलामीकी बेड़ियाँ तोड़ डालो—अरे, ये हमारी मनुष्यताको नीचे गिरा रही हैं, ये उसके विकासको रोक रही हैं तो में दुनियामें एक बड़ा भारी गुनहगार हूँ और मुझे बड़ा हर्ष है कि परमेश्वरने मुझे ऐसा अपराध करनेका साहस और दृढ़ता दी। और जिस तरह कि आजतक उस दयामयने मुझे अपने अन्तःस्थित सत्यको शब्दों द्वारा प्रकट करने का साहस और सामर्थ्य प्रदान की है उसी तरह मुझे आशा है कि वह भविष्य में भी मुझे उन यातनाओंको सहन करनेकी शक्ति देगा जो मनुष्य द्वारा दिये गये अन्यायपूर्ण दण्डसे हो सकती है।

और यह है देशबन्धु दासकी अपीलका अन्तिम अंश:

समझते हो, जितेन्द्रलाल बनर्जी क्या है? मैं विद्यार्थियोंसे कहता हूँ, उनके जीवन के मर्मको समझो। शब्द उसे कैसे प्रकट कर सकते हैं? उनके वे काम, उनका वह जीवन, बुद्धि और अन्तःकरणके उनके सद्गुण, और इन सबका एक महान् बलिदानकी सीमातक पहुँच जाना ये सब जितनी अच्छी तरहसे—जिस प्रभावशाली ढंगसे उसे प्रकट कर रहे हैं—उसके आगे मेरे शब्द फीके पड़ जाते हैं।

मैं फिर पूछता हूँ कि जितेन्द्रलाल बनर्जी क्या हैं? चाहता हूँ कि कलकत्तेके विद्यार्थी यह जानें कि इस प्रश्नका उत्तर किस तरह दें। मैं अपनी पूरी हार्दिक लालसासे उनकी ओर देख रहा हूँ। जितेन बाबूने अपना सारा जीवन अपने प्रिय विद्यार्थियोंके कल्याणके लिए अर्पण कर दिया। क्या आज यहाँ कोई ऐसा विद्यार्थी नहीं जो उनके इस बलिदानका अर्थ बता सके? जोशीली बातोंसे नहीं, व्यर्थके आँसू बहाकर नहीं, बल्कि उस कामको अपने सिरपर उठाकर, जो उन्हें इतना प्यारा था, उनके कामको सशक्त बनानेके लिए आत्मबलिदान करके।