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भाषण:विषय समितिको बैठकमें

है और मैं चाहता हूँ कि जो लोग सिद्धान्तमें परिवर्तन कराना नहीं चाहते कमसे कम वे मेरे प्रस्ताव में निहित भावनाके पक्षमें मत दें। साथ ही वे यह याद रखें कि यदि वे बादमें हसरत मोहानीके प्रस्तावके पक्षमें मत देंगे तो वे मेरे प्रस्तावको व्यर्थ कर देंगे।

भाषण समाप्त होनेपर, गांधीजीके प्रस्तावपर मत लिये गये और वह हर्षध्वनियोंके बीच पास हो गया। केवल १० सदस्योंने विपक्षमें मत दिये।

इसके बाद हसरत मोहानीने कांग्रेसके सिद्धान्तमें परिवर्तनका अपना पहला संशोधन रखा जिसमें उन्होंने शान्तिपूर्ण और वैध उपायोंके बजाय सभी सम्भव और उचित उपायों द्वारा स्वराज्य प्राप्त करनेका प्रस्ताव किया था।

इस संशोधनको कोई अच्छा समर्थन नहीं मिला, इसलिए प्रस्तोताने उसे वापस ले लिया।

उनके दूसरे संशोधनपर, जिसमें ब्रिटिश साम्राज्यके बाहर स्वराज्य लेनेकी बात कही गई थी, विशेष रूपसे बहुत विवाद हुआ।

एक दर्जन सदस्योंने उसका समर्थन किया…।

किन्तु इतने ही सदस्योंने संशोधनका विरोध किया…।

इसके बाद गांधीजीने एक संक्षिप्त भाषण दिया। उन्होंने कहा, मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि पंजाब और खिलाफतके मामलों में ब्रिटिश सरकारसे राहत पानेकी मुझे १५ महीने पहले जितनी आशा थी उससे अधिक आज है। कांग्रेसके सिद्धान्त के अन्तर्गत कांग्रेस में अब भी ऐसे दो दलोंके रहनेकी गुंजाइश है जो ब्रिटिश साम्राज्यके अन्दर या बाहर स्वराज्य चाहते हों, परन्तु जो लोग हिंसाका सहारा लेना चाहते हैं, उनके लिए उसमें कोई गुंजाइश नहीं हो सकती; क्योंकि जैसे ही कोई व्यक्ति कांग्रेस में शामिल होता है, उसे उसके सिद्धान्तके अनुसार अहिंसाकी प्रतिज्ञापर हस्ताक्षर करने ही पड़ते हैं। गांधीजीने जोर देकर कहा कि स्वराज्य प्राप्तिसे साम्राज्यवाद स्वतः भंग हो जायेगा। भारत तब भी निश्चय ही स्वतन्त्र होगा। भाषण समाप्त करते हुए उन्होंने सबको चेतावनी दी कि हम अपनेसे सहानुभूति रखनेवाले नरमदलीय और अन्य लोगोंको ऐसे कदम उठाकर अपनेसे अलग न करें। ऐसी कार्रवाइयोंसे हमारा वर्तमान सरल काम एक बहुत मुश्किल काम बन जायेगा।

हसरत मोहानीके संशोधनपर मत लेनेसे पहले सभी दर्शकों से कहा गया कि वे बाहर चले जायें…। उसके बाद उसपर मत लिये गये और वह भारी बहुमतसे नामंजूर कर दिया गया। उसके पक्षमें केवल ५२ मत आये…।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, २८-१२-१९२१