पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/१४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२३
भेंट:बंगालके प्रतिनिधियोंसे

स्वयंसेवक दल सरकारी घोषणाओंकी अवहेलना करके संगठित किया जा रहा है, और केवल वही लोग जेल जाने योग्य हैं जिनके विचार शुद्ध हैं।

श्रीयुत अनंगमोहन घोष : मैं यह मानता हूँ; किन्तु क्या नेतृत्वके लिए बुद्धिके बिना केवल त्याग पर्याप्त हो सकता है?

महात्माजी : दो बातें जरूरी हैं—त्याग और सचाई। मैं कह चुका हूँ कि यदि आपके पास सच्चा और बहादुर आदमी है तो वह आज नेतृत्व कर सकता है।

अनंगबाबू : उसमें बुद्धि भी होनी चाहिए।

महात्माजी : मैं ऐसे मनुष्यकी कल्पना शायद नहीं कर सकता जो ज्ञानपूर्वक त्याग कर रहा है लेकिन उसमें वस्तुतः बुद्धिमत्तापूर्वक नेतृत्व करनेके योग्य ज्ञान न हो। सचमुच मैं महसूस करता हूँ कि मैं आपको ऐसे बीसियों लोगोंके दृष्टान्त दे सकता हूँ जो आज नेतृत्व कर रहे हैं।

अनंगबाबू : जहाँतक हमारा अनुभव है, हमें ऐसे लोग नहीं मिलते।

महात्माजी : इसका कारण यह है कि हमने अभीतक अपने अन्य देशवासियोंको मौका नहीं दिया है। हमने असल में उन्हें अलग कर दिया है और अबतक हमने उन्हीं लोगोंके देशभक्त बनने पर जोर दिया है जो अंग्रेजी जानते हैं। हमारी मुसीबतका कारण यही है। हमें ऐसे आदमियोंकी सचमुच जरूरत है।

अनंगबाबू : हमें आवश्यक गुणोंसे युक्त ऐसे असहयोगी नहीं मिलते जो समितियोंकी जिम्मेदारी ले सकें या उनके अध्यक्ष आदि बन सकें।

महात्माजी : कठिनाई है, इससे मैं इनकार नहीं करता; किन्तु हमारे पास आज जैसे लोग हैं हम उन्हींसे अपना सब काम चला सकते हैं। शर्त एक ही है कि हम उन लोगोंको कुशल बना सकें, पर्याप्त गतिशील बना सकें और वे हमारा नेतृत्व कर सकें, इतना बहादुर बना सकें।

अनंगबाबू : स्वयंसेवकोंके सम्बन्ध में एक और प्रश्न है। एक धारा है कि स्वयंसेवक लोग जेल जानेको दशामें पारिश्रमिककी आशा नहीं कर सकते, किन्तु जबतक वे स्वयंसेवककी तरह काम करते हैं, क्या उन्हें कुछ मिलेगा?

महात्माजी : यदि वे काम कर रहे हैं तो उन्हें मिल सकता है; परन्तु मैं स्वयं यह चाहता हूँ कि स्वयंसेवक दलमें ऐसे लोग लिये जायें जिन्हें पैसेकी कतई जरूरत न हो। जो कार्यक्रम हमने सोचा है वह यह है कि कोई भी मनुष्य अपना नाम स्वयंसेवकोंमें दर्ज कराने के बाद उचित समय आनेपर थोड़े दिनोंमें गिरफ्तार कर लिया जायेगा; किन्तु यदि सरकार बिलकुल कुछ न करे और घोषणाको वापस भी न ले, तो पैसा देनेका प्रश्न उठता है और तब उन लोगोंको पैसा देना होगा जिनकी सेवाओंकी जरूरत है, किन्तु उन लोगों को नहीं जो सिर्फ अपने नाम दर्ज कराते हैं और जिनके नाम सक्रिय स्वयंसेवकोंको सूचीमें या सहायता पानेवाले लोगोंकी सूचीमें नहीं हैं। मैं वास्तवमें उन स्वयंसेवकों की परवाह नहीं करना चाहता जो गाँव-गाँवमें जाकर भाषण दें। वह समय बीत गया, किन्तु हमें ऐसे स्वयंसेवक चाहिए जो स्वदेशीका काम या ऐसा ही कोई दूसरा काम संगठित कर सकते हैं, और हमें अर्थलाभ करा