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भेंट : 'स्वराज्य'के संवाददातासे


गोविन्दके फिर गिरफ्तार होनेका तार मिला है। इस बार किसलिए पकड़ा गया है, इस बात का पता नहीं चलता। इसके बादकी खबर तुमसे मिलेगी।

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ ७७२०) की फोटो-नकलसे।

६०. भेंट : 'स्वराज्य' के संवाददातासे[१]

[५ जनवरी, १९२२ के पूर्व]

'स्वराज्य' का विशेष संवाददाता अहमदाबादसे लिखता है :

मैंने प्रस्तावित समझौतेके[२] सम्बन्धमें वर्तमान स्थिति जानने के लिए महात्माजीसे मुलाकात की।

प्रश्न : इस विषयमें लाला लाजपतराय और पण्डित मोतीलाल नेहरूकी क्या राय है?

उत्तर : जहाँतक मोतीलालजीका सम्बन्ध है, उनका मत तो 'यंग इंडिया'के गत अंकमें[३] बता दिया गया है। लालाजीने मुझसे जेलमें पड़े लोगोंके लिए फिक्र न करनेको कहा है।

मान लीजिए, स्वयंसेवक-संगठनों को दूसरे प्रान्तों में गैर-कानूनी नहीं घोषित किया जाता और सार्वजनिक सभाओंपर भी कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया जाता, उस हालत में स्वयंसेवक और कांग्रेस-कार्यकर्त्ता जेल जानके लिए क्या करेंगे?

उसके लिए तो उन्हें आक्रामक ढंगकी सविनय अवज्ञा करनी होगी। इसके लिए उन्हें तबतक इन्तजार करना पड़ेगा जबतक मैं उसे शुरू न करूँ। इस बीच उन्हें स्वयंसेवकोंका संगठन करना चाहिए, प्रति दिन कमसे कम चार घंटे चरखा चलाना, प्रति घंटा कमसे कम एक तोला १० या १२ नम्बरका बढ़िया बटा हुआ और एक- सार सूत कातना चाहिए।

क्या स्वयंसेवकों को विदेशी कपड़ों और शराबकी दुकानोंपर धरना देना चाहिए?

जो लोग अपनी जिम्मेदारी समझते हैं, और शान्तिपूर्वक काम कर सकते हैं, वे धरना दे सकते हैं।

आप नये वर्ष में कबतक संघर्षके चलनेकी आशा रखते हैं?

कह नहीं सकता। वर्तमान स्थितिमें तो यह शायद दो महीने से अधिक न चले। हमें भारत के हर हिस्से में सरकार द्वारा कोड़ों और गोलियोंकी अन्धाधुन्ध मारके लिए

  1. यह भेंट-वार्ता स्वराज्यसे उद्धृत की गई थी।
  2. इस समझौतेके लिए मालवीयजी बातचीत चला रहे थे।
  3. २९ दिसम्बर, १९२१ के अंकमें "जेलसे एक दूसरा पत्र" (एनभदर जेल लैटर) शीर्षक से प्रकाशित हुआ था। मोतीलाल नेहरूने लिखा था : "…बातचीतका एक ही आधार हो सकता है वह यह कि तीनों मांगोंमें किसी तरह की कमी नहीं की जायेगी…"।