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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

हैं जिनका लाभ हम सरकारकी कृपासे उठाते हैं। अगर सरकार चाहे तो हम सबको बिलकुल अलग-अलग कर सकती है और रेलगाड़ी, डाक-तार आदिकी सुविधाओंसे हमें वंचित कर सकती है। हाँ, एक चीज ऐसी है जिसे सरकार हमारी मर्जीके बगैर नहीं दबा सकती और वह है हमारी आत्मा। इसलिए यदि हम भारतकी आत्माको स्वतन्त्र बनाये रखना चाहते हैं तो सरकार हमारे रास्तेमें जो भी रुकावटें डाले उनका मुकाबला करने और उनपर विजय पानेके लिए हमें तैयार रहना चाहिए।

यदि सम्पादकको अच्छे प्रतिलिपिक मिल जायें तो वह आसानीसे एक हजार प्रतिलिपियाँ तैयार करा सकता है। मेरी सलाह है कि सम्पादक अपनी बात और भी कम शब्दोंमें कहना सीखे। अगर वह थोड़ा-सा अभ्यास करे तो अपनी पूरी बात सिर्फ एक फुलस्केप कागजके दोनों तरफ लिखकर कह सकता है। रोजाना जनता जिन छपे हुए पत्रोंको पढ़ती है और जिन्हें पढ़ने में उन्हें इतनी तकलीफ उठानी पड़ती है। उनकी अपेक्षा यह संक्षिप्त समाचारपत्र कहीं ज्यादा पढ़ने योग्य होगा। अगर समाचारपत्रमें से भरती की सामग्री, सुर्खियाँ और विज्ञापन हटा दिये जायें तो बाकी सामग्री एक फुलस्केप कागज में आ सकती है। सम्पादकको चाहिए कि वह ऐसे समाचार और विचार प्रकाशित करे जिन्हें पाठक और कहीं नहीं पा सकता। ऐसा करनेसे उसके पत्रकी प्रचार-संख्या बिना प्रयत्नके हजार गुनी हो जायेगी। सम्पादकको साथ ही यह याद रखना चाहिए कि लिखित दैनिक पत्रके लिए एक और तरहके संगठनकी जरूरत है। इसके एजेण्टोंको वितरकोंका कार्य कम और प्रतिलिपियोंका कार्य ज्यादा करना होगा। लिखित दैनिक पत्रके प्रबन्धकको एजेण्टोंकी और उन ग्राहकोंकी सूची रखनी होगी जो इन एजेण्टोंसे पत्र खरीदते हैं। इन एजेण्टोंको अपने-अपने क्षेत्रोंके लिए स्थानीय प्रतिलिपिक रखने होंगे जो अपने क्षेत्रोंके लिए काफी प्रतिलिपियाँ तैयार करेंगे। इस प्रकार लिखित दैनिक पत्रके कर्मचारियों और पाठकोंके बीच निकटतर और सजीव सम्पर्क स्थापित हो जायेगा। इसके अलावा, जब यह योजना ठीक तरह चल पड़ेगी तो आप देखेंगे कि परेशानी कम हो जायेगी; समय, शक्ति और पैसा भी कम खर्च होगा और इसके परिणाम अधिक टिकाऊ और शीघ्र फलदायी होंगे।

एक बैरिस्टरको नोटिस

अलीगढ़में दंगों के तुरन्त बाद जब श्री टी॰ ए॰ के॰ शेरवानीको गिरफ्तार किया गया, उस समय वे राष्ट्रीय मुस्लिम विश्वविद्यालयके व्यवस्थापक थे। इस समय श्री शेरवानी, इलाहाबादकी नैनी केन्द्रीय जेलमें सजा काट रहे हैं। अभी उन्हें उच्च न्यायालयसे यह नोटिस दिया गया है कि उन्हें भारतीय दण्ड संहिताकी धारा १५३–ए के अन्तर्गत सजा हुई है। अतः वे बतायें कि उनका नाम एडवोकेटोंकी सूचीसे क्यों न हटा दिया जाये या उन्हें वकालत करनेसे मुअत्तल क्यों न कर दिया जाये क्योंकि उन्हें अपनी सफाई इसी माहकी २३ तारीखको देनी है। दो साल पहले बड़ेसे-बड़ा वकील ऐसा नोटिस पाकर सिहर उठता! उस समय इस तरहकी कार्रवाईको भावी बर्बादीका सूचक समझा जाता। लेकिन खुश किस्मतीसे स्थिति बदल गई है। मुझे पता है कि इस नोटिससे श्री शेरवानीकी एक रात भी बेचैनीसे नहीं कटी। उन्होंने असहयोगीकी