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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय


स्वागत समिति के सभापति श्री वल्लभभाई पटेलने अपना भाषण हिन्दीमें पढ़ा। वह इतना छोटा था कि कोई १५ मिनटमें खतम हो गया। सभापति महोदयका परिचय कराने के लिए एक भी भाषण नहीं हुआ। यह पूरी कार्रवाई कांग्रेस कमेटीने ही कर डाली। इससे बारह हजार प्रतिनिधियों और प्रेक्षकोंके कमसे कम दो घण्टे बच गये। सभापति महोदयका भाषण भी करीब बीस मिनटमें पूरा हो गया था। प्रत्येक वक्ताने अपने प्रतिपाद्य विषयपर ही भाषण किया। वे अपने विषयसे इधर-उधर नहीं भटके। एक भी मिनट व्यर्थकी बातमें नहीं लगाया गया।

स्थिति ही ऐसी थी कि इसके सिवा और कुछ हो ही नहीं सकता था। तमाम प्रस्तावों में जो कुछ कहा गया था वह राष्ट्रको ही लक्ष्य करके कहा गया था। उनके द्वारा जनताके सामने ऐसा कार्यक्रम रखा गया जिसके अनुसार, यदि देश यह चाहता हो कि संसारमें उसे अपना उचित स्थान प्राप्त हो तो, उसे बड़े उत्साह और जोशके साथ काम करना होगा।

इसलिए विषय-समिति तथा खुले अधिवेशनमें इस बातपर असाधारण रूपसे ध्यान दिया गया कि प्रत्येक प्रस्तावको लोग खूब अच्छी तरह समझ लें और फिर उसपर मतदान करें।

यह तो हुआ कांग्रेस के इस अधिवेशनके काम-काज के सम्बन्धमें। अब प्रदर्शनीकी बात करें।

प्रदर्शनी

महासभाका प्रदर्शन विभाग भी कम प्रभावशाली नहीं था। खुद मण्डप ही बड़ा भव्य और शानदार था। वह चारों ओरसे खादीसे आच्छादित था। मेहराबें भी खादीकी थीं और विषय समितिका मण्डप भी खादीका ही था। मण्डपके सामने ही एक सुन्दर फुहारा था, जिसके आसपास हरे-हरे मैदान बड़े सुहावने मालूम होते थे। कांग्रेसके मण्डपके पीछे एक बड़ा भारी मण्डप और था जिसमें कांग्रेसके वक्ता आ-आकर कांग्रेसकी कार्रवाईका हाल उन हजारों नर-नारियोंको सुनाया करते थे, जो कांग्रेस के प्रति अपने प्रेम और प्रवेश शुल्क देनेकी अपनी तैयारीके बावजूद कांग्रेसके मण्डपमें न जा पाये थे।

रात के समय वह सारा मैदान बिजलीकी रोशनीसे जगमगा उठता था। और चूंकि यह स्थान साबरमती के किनारे एलिस पुलके छोरपर ही है इसलिए नदीके दूसरे किनारेसे देखनेवाले हजारों तमाशबीनोंके लिए वह बड़ा भव्य दृश्य था।

प्रदर्शनीका स्थान बस पुलके पास ही था। झुंडके-झुंड लोग प्रदर्शनीमें टूटे पड़ते थे। प्रदर्शनी बड़ी सफल रही। लोगोंकी आमद रफ्त तो अनुमानसे भी बाहर निकली।

कोई ४० हजारसे कम प्रेक्षक हररोज वहाँ नहीं गये। भारतमें क्या चीजें तैयार हो सकती हैं इसका यह अद्वितीय प्रदर्शन था। चिकाकोल (आन्ध्र प्रदेश) के कुछ कारीगर आये थे। वे कपासकी समस्त क्रियायें खुद करके बताते थे। १०० नम्बर तकका सूत हाथसे कातकर दिखाते थे। यह दृश्य प्रदर्शनीका मुख्य आकर्षण था। किसी भी तरह के यंत्रकी सहायता के बिना शायद ऐसी बर्फ जैसी सफेद पुनी नहीं बनाई जा