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६८. खिलाफत परिषद्

कांग्रेस अधिवेशन के साथ-साथ ही खिलाफत परिषद् और मुस्लिम लीगकी बैठक होती है। इससे हिन्दुओं और मुसलमानोंको बहुत कुछ सीखने और परस्पर मित्रता बढ़ाने का अवसर मिलता है। संयोगसे खिलाफत परिषद् के अध्यक्ष कांग्रेसके इस अधिवेशनके अध्यक्ष भी हैं—इस बातमें मुझ जैसे श्रद्धालुको तो ईश्वरका हाथ ही दिखाई देता है। देशबन्धुने गिरफ्तार होकर, वे कांग्रेस अधिवेशन में शामिल होनेपर जितनी सेवा करते उससे कहीं अधिक सेवा की है और हकीमजीने जेलसे बाहर होने तथा खिलाफत परिषद्का भार सिरपर होनेपर भी कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्षके पदका भार भी सँभाल लिया है और इस तरह हिन्दू-मुस्लिम एकतामें वृद्धि की है। खिलाफतके शिविर और कांग्रेसके शिविरका सम्बन्ध इतना निकटका हो गया है कि किसीको ऐसा आभास नहीं हो सकता कि दोनों अलग-अलग हैं।

इन्हीं कारणोंको ध्यान में रखकर मौलाना अब्बास तैयबजीने सुझाव दिया कि मुस्लिम लीगको अलग संस्थाके रूपमें कायम रखनेका अब कोई कारण नहीं है। आज जब कि हिन्दुओं और मुसलमानोंके दिल एक हो रहे हैं तब दो अलग-अलग राजनैतिक संस्थाओंकी क्या जरूरत है? जबतक वे अपने-अपने अधिकारोंके लिए परस्पर एक-दूसरेसे लड़ रहे थे तबतक दो अलग-अलग राजनैतिक संस्थाओंकी जरूरत थी। अब तो खिलाफत समिति ही पर्याप्त है। खिलाफत समिति तो रहेगी ही क्योंकि उसका सम्बन्ध धर्मसे है।

इस तरह मुस्लिम लीगको खत्म कर देनेके कारण अत्यन्त सबल और शुद्ध हैं, तथापि जबतक मुसलमानोंका मत इस बारेमें अच्छी तरहसे दृढ़ नहीं हो जाता तबतक मुस्लिम लीगको खत्म कर देनेका विचार न करना ही ठीक होगा।

खिलाफत परिषद् और मुस्लिम लीगकी बैठकमें हर स्थितिमें अंग्रेजोंसे सम्बन्ध तोड़ने की जो चर्चा हुई थी उसके विषयमें में पहले ही लिख चुका हूँ।[१] इसलिए यहाँ और अधिक विचार करनेकी कोई जरूरत नहीं है। मुझे तो खिलाफत परिषद् और मुस्लिम लीगकी बैठकमें दोनों कौमोंके बीच दिन-प्रतिदिन बढ़नेवाले प्रेमका जो अनुभव हुआ उसके सम्बन्धमें लिखनेकी इच्छा होती है। कांग्रेसके मंचपर इतने मुसलमान और खिलाफत परिषद् तथा मुस्लिम लीग के मंचोंपर इतने हिन्दू कार्रवाई में मुक्त भावसे भाग लेते थे कि सभी को यह भव्य दृश्य अपने मनोंमें सँजोकर रखना चाहिए।

हालाँकि हिन्दुओं और मुसलमानोंके दिल साफ होते जाते हैं तथापि हम अभीतक भयरहित नहीं हुए हैं। हमारा मार्ग अभी रेगिस्तानों, जंगलों, घाटियों और पहाड़ियोंसे भरा हुआ है; उसे हमें अभी साफ करना है। उसपर अभी कंकड़ बिछाने

  1. गांधीजीने २७ दिसम्बर, १९२१ को खिलाफत परिषद्‍में और ३० दिसम्बर, १९२१ को मुस्लिम लीगके अधिवेशनमें भाग लिया था।