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मित्रताका नियम

 

इन स्थितियोंमें हिन्दू क्या करें? उन्हें मलाबारी हिन्दुओंका बचाव करना चाहिए और अपना पक्ष मुसलमानोंके सम्मुख रखना चाहिए; किन्तु उन्हें मौलानापर अथवा दूसरे मुसलमानोंपर रोष न करना चाहिए। हिन्दू ऐसा मानते हैं कि कुछ मोपलोंने अत्याचार किये; इसलिए उन्हें आलोचना करनेका अधिकार है। जो मुसलमान इससे इनकार करते हैं वे मोपलोंका समर्थन भले ही करें; किन्तु दोनोंमें से एक भी पक्ष आँखों-देखी बात नहीं कहता।

फिर यह भी याद रखना चाहिए कि सब मुसलमान जैसा मौलाना कहते हैं वैसा नहीं कहते। बहुतसे मुसलमानोंने मोपलोंकी निन्दा की है। सरकारने तो मोपलोंके पागलपनका पूरा फायदा उठाया है। कुछ मोपलोंने पागलपन किया इससे उन्होंने पूरी जातिको दण्ड दिया है और अतिशयोक्ति करके हिन्दुओंको भड़काया है। मलाबारके हिन्दू भी मोपलोंकी तरह उपद्रवी हैं और उनको उसने मोपलोंसे लड़ा दिया है। सरकारने जो कुछ किया है वह हिन्दुओंके बचाव के लिए नहीं किया है। सरकारने तो केवल अपनी सत्ताका बचाव किया है।

हिन्दू और मुसलमान दोनों ही कमजोर हैं। जो कमजोर होता है वही सदा रोष करता है और द्वेष भी करता है। हाथी चींटीसे द्वेष नहीं करता। चींटी-चींटीसे द्वेष करती है। जो हिन्दू मोपलोंके अपकृत्योंसे अथवा मौलानाके समर्थन से डरते हैं और जो मुसलमान बिना देखे और पूछताछ किये मोपलोंका बचाव करते हैं वे दोनों ही हिन्दुओं और मुसलमानोंकी एकताकी शर्तको नहीं समझते। कुछ मुसलमानोंके दुर्व्यहार और मौलाना- जैसे लोगोंकी नासमझीसे हिन्दुओंको हताश नहीं होना चाहिए। मुसलमानोंको मौलानाकी तरह अनुचित बातका समर्थन करनेकी आदत छोड़नी चाहिए। किन्तु यदि दोनों पक्ष समझदारीसे काम लेनेवाले हों तो तकरार या कड़वाहट हो ही किसलिए? तकरार के लिए हमेशा दो पक्षोंकी जरूरत होती है। जब एक पक्ष भूल करे तब दूसरे पक्षको शान्त रहना चाहिए। तभी हिन्दू-मुस्लिम एकता टिक सकती है। जब एक भला हो, तभी दूसरा भलाई करे यह मित्रताका नियम नहीं है। यह तो न मित्रताका नियम है न शत्रुताका। यह तो व्यापार हुआ, लेन-देन हुआ। मित्रता में व्यापार या लेन-देनके लिए अवकाश नहीं होता। मित्रता बहादुरोंमें ही हो सकती है। लेन-देन कमजोरोंके बीच होता है। हम तो कमजोर भी हैं और ताकतवर भी; इसलिए हिन्दुओं और मुसलमानोंका सम्बन्ध मित्रताका भी है और लेन-देनका भी। हम मानते हैं कि दिनपर-दिन यह लेन-देनकी भावना कम होती जा रही है और मित्रताकी भावना बढ़ती जा रही है, यदि एक पक्ष दिन-प्रतिदिन शुद्ध होता जाये और बहादुर बनता जाये तो यह मित्रता स्थायी हो सकती है।

बहादुरीका अर्थ उद्दण्डता नहीं है। जो अपनी शक्ति से दूसरेको कुचलता है वह बहादुर नहीं है। बहादुर वह है जो शक्ति होनेपर भी किसीको नहीं डराता और निर्बलकी रक्षा करता है। बहादुर किससे डर सकता है? मुसलमान शरीरसे बली हैं। यदि उनको सारी दुनियाकी मदद भी मिल जाये तब भी हिन्दुओंको उनसे न डरना चाहिए; बल्कि ईश्वरपर विश्वास रखकर न्यायके मार्गपर चलना चाहिए और न्यायका मार्ग तनिक भी नहीं छोड़ना चाहिए। मुसलमानोंको मानना चाहिए कि