पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/२९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

१०५. अपने आपसे होशियार!

मद्रासके एक पत्र लेखकने अपने शहरकी हालकी घटनाओंके बारेमें मुझे एक पत्र[१] लिखा है। मैं इस पत्रको खुशीके साथ, जिसमें कुछ दुःख भी मिला हुआ है, प्रकाशित कर रहा हूँ। यह तो स्पष्ट मालूम होता है कि वहाँकी हुल्लड़बाजीने आगे चलकर बड़ा शोचनीय रूप धारण कर लिया। डा० राजन्ने तो आरम्भकी घटनाओंका ही वर्णन किया था।[२] श्री राजगोपालनका असहयोगियोंपर दोषारोपण करना बिलकुल ठीक है।

जब सैकड़ों-हजारों लोग गाड़ियोंकी तोड़-फोड़में, निरपराध मुसाफिरोंके खिलाफ बुरी तरह गाली-गलौज करनेमें तथा एक सिनेमावाले को धमकानेमें लगे हुए हों, तब उनमें कितने असहयोगी थे और कितने हुल्लड़बाज, यह पहचानना बड़ा कठिन हो जाता है। असहयोगी एक साथ दोनों लाभ नहीं उठा सकते, ‘मीठा-मीठा गप और कड़वा-कड़वा थू’ नहीं कर सकते। वे तो दावा करते हैं कि हम लाखों, करोड़ों हैं। वे यह भी दावा करते हैं कि लगभग सारा भारत हमारे पीछे है। अगर ऐसा है, तो या तो हमें अपनी कार्य विधिको अपने स्वीकृत सिद्धान्तके अनुसार नियमित कर लेना चाहिए, या फिर सार्वजनिक कार्योंसे कतई नाता तोड़ लेना चाहिए, फिर चाहे उसकी बदौलत हमें उस समाजसे अलग ही क्यों न हो जाना पड़े। अभी तो हमें और भी कई जगह हड़तालें करनी हैं। दिल्ली, नागपुर और अन्य शहरोंको अब इन घटनाओंसे सबक लेना चाहिए। मेरा तो उनसे यही कहना है कि अगर उन्हें पूरी तरह से यह विश्वास न हो कि हम ऐसा प्रबन्ध कर सकते हैं जिससे बम्बई और मद्रासके जैसी अशोभनीय घटनाएँ हमारे यहाँ न हो सकेंगी, तो वे हड़तालोंके झगड़े में बिलकुल ही न पड़ें। मुझे विश्वास है कि मद्रासकी कांग्रेस कमेटी इस बातकी अच्छी तरह तहकीकात करेगी और जहाँ अपनी गलती देखेगी, उसे स्वीकार करेगी। बम्बईके भयंकर अनुभवोंके बाद तो मद्रासमें इस बातका पूरा प्रबन्ध होना चाहिए था जिससे वहाँ ऐसी सार्वजनिक हिंसा बिलकुल न होने पाती। श्री राजगोपालनके पत्रकी पुष्टि एक सक्रिय असहयोगीके पत्रसे भी होती है। चूँकि उन्होंने अपने पत्र में कुछ व्यक्तियोंके

  1. प्रेसीडेंसी कालेज, मद्रासके वी० आर० राजगोपालनका पत्र यहाँ नहीं दिया गया है। उसके कुछ अंश इस प्रकार हैं “...मद्रासके असहयोगियोंका आचरण देखकर सभी लोगोंको सदमा पहुँचा। उन्होंने युवराजको देखनेके इच्छुक लोगोंभो तंग किया। ट्राम गाड़ियाँ रोक दी गई और यात्रियोंपर पथराव किया गया।...जहाँ भी ट्रामें चालू रखनेकी धृष्टता की गईं...उनको रोका गया, उनके शीशे तोड़ डाले गये, पायदान चकनाचूर कर दिये गये और एक ट्राममें आग लगाने की कोशिश की गई...कुछ यात्री महिला-गाइडों और विद्यार्थियोंपर थूका गया, बहुत ही भद्दी-भद्दी गालियां दी गई और उनसे छेड़छाड़ की गई।...स्काउटोंकी पगड़ियां छीन ली गई और उनपर पथराव किया गया।...”
  2. देखिए “मद्रासमें गुण्डागर्दी”, १९-१-१९२२।