पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/३२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०३
भाषण: बारडोली ताल्लुका सम्मेलनमें

सविनय अवज्ञा सम्बन्धी प्रस्ताव पास कर चुकी थी और उस प्रस्तावकी कसौटीपर बारडोलीकी तैयारीकी जाँच करनी थी और उसे देशके सामने प्रस्तुत करना था। पिछले दौरेसे मेरे मनपर यह प्रभाव पड़ा था कि बारडोलीको तैयार किया जा सकता है, किन्तु मैं यह नहीं कह सका था कि बारडोली वस्तुतः तैयार है। मैं ताल्लुकेके गाँवोंमें भी गया था और मैंने लोगोंसे पूछताछ करके वास्तविक हालत मालूम की थी। उसके अनुसार मैं ऐसा नहीं कह सका था कि इस ताल्लुकेमें स्वदेशीके प्रचार और अस्पृश्यता निवारणके कार्यकी प्रगति सन्तोषजनक है।

दूसरी जगहों में अस्पृश्य वर्गोंके लिए पृथक शालाएँ हो सकती हैं, किन्तु बारडोलीमें तो अस्पृश्यताको पाप ही मानना चाहिए। अन्त्यजोंके लिए पृथक शालाएँ खोलकर आप सन्तोष कर लें यह बात चल नहीं सकती। आपका तो यह कर्त्तव्य है कि जिन-जिन गाँवोंमें राष्ट्रीय शालाएँ हों उनमें आप लोग अन्त्यजोंसे प्रार्थना करके उनके बच्चोंको स्वयं लायें और उन्हें अपने बच्चोंके साथ बिठायें। आजका प्रस्ताव पास करनेसे पहले उक्त गाँवोंके लोगोंको यह बात स्वीकार करनी चाहिए। किन्तु यहाँ आनेके बाद मुझे यह खबर मिली है कि अभीतक ऐसा नहीं किया गया है। मैं अपने पिछले दौरेके वक्त इस ताल्लुकेके वाँकानेर गाँवमें गया था। मैंने देखा था कि तबतक वहाँकी राष्ट्रीय शालामें अन्त्यज बच्चे नहीं आते थे। उस समय वहाँके कार्यकर्त्ताओंने इस कमीको दूर करनेका जिम्मा लिया था। किन्तु जैसा कि सभापति महोदयने आज कहा कि वाँकानेरकी राष्ट्रीय शालामें अन्त्यज बालकोंका आना अभीतक शुरू नहीं हुआ। मैं जानता हूँ कि इसका कारण अन्त्यजोंके प्रति तिरस्कार नहीं है, बल्कि कार्यकर्त्ताओंकी लापरवाही ही है। यदि हमें स्वराज्य लेना हो, खिलाफत और पंजाबके मामलोंमें न्याय प्राप्त करना हो तो हम अन्त्यजोंके प्रति तिरस्कारका भाव न रखें, इतना ही काफी नहीं है, बल्कि हम इस मामलेमें लापरवाही भी नहीं कर सकते।

जैसी स्थिति अस्पृश्यता के सम्बन्धमें है वैसी ही स्वदेशीके सम्बन्धमें भी है। बार- डोली ताल्लुकेके भाइयों और बहनोंने स्वदेशीका प्रचार उतना नहीं किया है जितना करना उचित था। अभी आप लोगोंमें अपनी जरूरत पूरी करने लायक खादी तैयार करनेकी शक्ति नहीं आई। अभी आपके यहाँ इतने हाथकरघे भी नहीं हैं कि आप उनसे अपनी जरूरतकी खादी बुन सकें। अभी बारडोलीकी सब बहनोंने यह प्रतिज्ञा भी नहीं की है कि वे रोज कमसे कम दो, तीन या चार घंटे, बुनाईके लायक बढ़िया सूत कातेंगी और उसे बुनवायेंगी। यह बात जरूर है कि पन्द्रह दिन अथवा एक महीना पहले बारडोली ताल्लुकेमें जितने चरखे चलते थे उनकी अपेक्षा अब अधिक चरखे चलते हैं और अधिक सूत काता जाता है; किन्तु इतना ही काफी नहीं है। यदि आप समस्त भारतको स्वतन्त्र करानेका यश लेना चाहते हों, यदि आप बारडोलीकी नाक रखना चाहते हों तो आपको अपने ताल्लुकेमें जितना और जैसा सूत इस समय कतता है उससे बहुत अधिक और बहुत बारीक सूत कातना पड़ेगा।

मैं मानता हूँ कि हिन्दू, मुसलमान, पारसी और ईसाई सब आपसमें भाई-भाई हैं। यह भावना तो आप लोगोंमें है, किन्तु मुझे पता है कि हिन्दुओं और मुसलमानों के