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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बावजूद सभाएँ करनी चाहिए और निष्कासन या कैदका खतरा मोल लेना चाहिए । मेरी राय में, जिन्हें निष्कासित किया जाये उन्हें वहाँ फिर वापस जाकर गिरफ्तार होना चाहिए।

इसी तरहकी एक खबर काठियावाड़से भी आई है। ऐसा प्रतीत होता है कि काठियावाड़ के राजाओंने गवर्नर महोदय के लिए शिकार पार्टियों और दूसरे अराजनीतिक लेकिन खर्चीले मनोरंजनकी व्यवस्था की है। इन रियासतोंकी प्रजा बहुत नाराज है। नाराजगी गवर्नरके दौरेपर नहीं, बल्कि उनके सम्मानमें आयोजित इन खर्चीले मनो- रंजनोंपर है । शायद गवर्नर इनमें कोई रस भी न लेते हों । इन अधिकारियोंको हमेशा ऐसे मनोरंजनोंकी जरूरत आखिर क्यों हो ? यह तो है नहीं कि जब वे सदर मुकामपर काम करते हैं तो वहाँ उनके लिए मनोरंजनकी व्यवस्था न होती हो । वस्तुतः ये मनोरंजन, उनमें से कमसे कम कुछके लिए खुद एक काम बन जाते होंगे । कोई भी पक्ष इन प्रदर्शनों में अपने स्वाभाविक रूपमें नहीं रह सकता। उन्हें श्रेष्ठ व्यवहारका दिखावा करना पड़ता है और अपनी उचित दूरी रखनी पड़ती है । अनौप- चारिक रूपसे मिलनेपर उन्हें हमेशा औपचारिक और सही व्यवहार करना होता है । इन परिस्थितियोंमें, यदि इन मनोरंजनोंको स्थान न दिया जाये और दौरोंको केवल राजकीय कामकाज तक ही सीमित रखा जाये, तो निश्चय ही इससे समय और धनकी बहुत बचत होगी। इसके अलावा, शिकार पार्टियोंसे शाकाहारी लोगोंसे आबाद काठियावाड़की भावनाओंको ठेस पहुँचती है। काठियावाड़के लोग, वे कुछ न कहें तो भी, जीव-जन्तुओंकी व्यर्थ की इस हत्यासे नाराज हुए बिना नहीं रह सकते। मुझे बताया गया कि शिकार के जानवरको प्रलोभन देकर शिकार-स्थलतक ले आनेके लिए कई दिन पहलेसे वहाँ बकरे बाँधे जाते हैं, जिन्हें रोज-रोज मारकर वह जानवर खा जाता है। इस तरहके शिकारमें, जिसके लिए इतना निर्दोष रक्त बहाना पड़े और शिकारीको जान या चोटका कोई खतरा न हो, कोई आकर्षण नहीं रहता। वह तो उस कानूनकी एक हलकी नकल बन जाता है जो आज भारतमें सरकार और जनता के बीच प्रचलित है; अर्थात् वह कानून जिसके अधीन जनता हमेशा सरकारका शिकार होती है और सरकारको कभी कोई खतरा नहीं होता । यह मूसाका कानून नहीं है, जिसमें जानके बदले जान लेनेकी व्यवस्था थी। इस कानूनके अधीन तो ईंटोंके बदले गोलियोंकी बौछार की जाती है। और खरोंचके बदले प्राण ले लिये जाते हैं। जिसमें शिकारीको कोई खतरा न उठाना पडे, वह अच्छा शिकार नहीं, बल्कि साफ क्रूरता है। लेकिन जाहिर है कि गवर्नर- का एजेंट काठियावाड़में राजाओंकी फिजूलखर्ची तकके खिलाफ विरोधी सभाएँ सहन नहीं कर सका, और इसलिए ऐसा लगता है कि उसने सार्वजनिक सभाओंपर पाबन्दी लगा दी है और सर्वश्री मणिलाल कोठारी व मनसुखलाल रावजीभाई मेहताको गिरफ्तार कर लिया है।

एजेंसियोंमें यह सब हलचल एक नई घटना है। गिरफ्तार होनेवालों को मैं बधाई देता हूँ । हमारे लिए अहिंसाका नियम जितना खास ब्रिटिश क्षेत्रमें अनिवार्य है, उतना ही एजेंसियों और रियासतोंमें भी है। इससे बड़ी बात यह है कि रियासतोंके निवासियोंको सरकारसे असहयोग करनेके लिए या उस आन्दोलनके हितमें रियासतोंको