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अंगद - बसीठी ३४९

स्वराज्यका एक अर्थ यही है कि हम अपनी इच्छा के अनुसार व्यवहार कर सकें और बोल-चल सकें। उस समय सिर्फ किसीकी जान लेनेपर अंकुश रहेगा और जान लेनेका हक तो हमें स्वराज्यमें भी नहीं मिल सकता ।

उस बसीठी-पत्रमें यह कहा गया है कि यदि सरकार अहिंसात्मक कार्योंके सम्बन्धमें गिरफ्तार किये गये कैदियोंको छोड़ दे और दमन नीतिको त्याग दे तो हम फिल- हाल सविनय अवज्ञा बन्द कर देंगे । तीव्र सविनय अवज्ञा उसे कहते हैं जिसमें व्यक्ति अथवा समुदाय जान-बूझकर सत्ताका अनादर करने के लिए मनुष्यकृत निर्दोष कानून भी मर्यादामें रहकर भंग करे । जो सविनय अवज्ञा आज सारे देशमें कर रहे हैं यह तो अनिवार्य है अतः सौम्य कानून-भंग है। इसके बिना तो काम चल ही नहीं सकता । इसका अर्थ यह है कि हम सरकार द्वारा मुंह बन्द किये जानेपर भी बोलें, सभाओंपर रोक लगा दिये जानेपर भी सभाएँ करें और अखबारोंके बन्द कर दिये जानेपर भी लिख-लिखकर अखबार निकालें । यह सब सौम्य सविनय अवज्ञा है । हम यह सौम्य सविनय अवज्ञा कर रहे हैं और जबतक ऐसे बेहूदे हुक्म निकलते रहेंगे तबतक अवज्ञा करते ही रहेंगे। परन्तु इसके अलावा जो अवज्ञा बचावके रूपमें नहीं बल्कि सरकारको चिढ़ाने के लिए की जाती है, जो विद्रोहके रूपमें है, हम उसे -यदि सरकार दमन नीतिका त्याग कर दे तो - बन्द कर देंगे । मैं समझता हूँ कि यदि इतना हो जाये तो हमें उसे बन्द कर देना चाहिए; क्योंकि यदि सरकार हमारे भाषणों, हमारी लेखनी और हमारे सभा-सम्मेलनोंपर से रोक हटा ले और उन्हें स्वतन्त्र कर दे तो फिर उसे हमारी माँगें कुछ दिनोंमें स्वीकार करनी ही होंगी ।

अतएव इस समय बारडोलीपर इतना ही भार है कि वह योद्धाओंको छुड़ा ले और दमन-नीति बन्द करा दे। यदि बारडोली इतना कर सके तो कहा जायेगा कि उसने अपना काम पूरा कर दिया ।

परन्तु यदि वाइसराय इसे भी न करें तो फिर क्या कर्त्तव्य है ? यदि वे लोकमत व्यक्त करनेका अधिकार देना भी स्वीकार न करें तो फिर तीव्र सविनय अवज्ञा किये बिना कैसे रहा जा सकता है ? एक हदतक तो मनुष्य प्रतिरक्षात्मक संघर्ष करता रहता है; परन्तु किसी क्षण उसे आक्रमण भी करना पड़ता है। तीव्र सविनय अवज्ञा एक प्रकारका अहिंसात्मक आक्रमण ही कहा जा सकता है।

हम वाइसराय महोदयसे यह सब स्पष्ट कह चुके हैं । यह शान्ति प्रस्ताव करके हमने पूरी सभ्यता प्रदर्शित की है। इसका अर्थ यह है कि यदि वाइसराय ११ फरवरी तक बारडोलीके मार्फत की गई हमारी माँगोंको स्वीकार कर लेंगे तो बारडोलीमें सविनय अवज्ञा फिलहाल मुल्तवी रहेगी । योद्धाओंके छूटनेपर सब मिलकर जो तय करेंगे वैसा आन्दोलन चलाया जायेगा । मेरी मान्यता तो यह है कि यदि हमारी ये माँगें मंजूर कर ली गईं तो सामुदायिक अवज्ञा बहुत छोटे रूपमें करनी पड़ेगी। हमारी माँगें मंजूर होने का दूसरा अर्थ हो ही नहीं सकता। इसलिए मेरा यह मत है कि भाषण, लेखन और सभा-सम्मेलनकी स्वतन्त्रताकी माँगका स्वीकार किया जाना प्रायः असम्भव है ।