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टिप्पणियां

५. अब ताल्लुकेमें विदेशी कपड़ा बहुत कम बिकता है। बेशक, उनके घरोंमें पहले से जो था उसे उन्होंने निकाला नहीं है । मुझे दुःख है कि वह उन्होंने जमा कर रखा है।

६. इस ताल्लुकेके बहुत कम लोग अब ढेढ़ों और भंगियोंका स्पर्श करनेमें दोष मानते हैं ।

७. यहाँ के लोग असहयोग के कार्यक्रम के अंगोंका पालन सन्तोषजनक रूपमें कर रहे हैं।

८. मेरा खयाल है कि इस ताल्लुकेके लोगोंमें दम्भ, ढोंग, लुच्चापन, झूठ बोलना आदि दोष कम हैं। मैंने इस ताल्लुकेको इन्हीं कारणोंसे असह्योगके लिए चना है ।

९. अच्छे से अच्छे कार्योंमें भी लोगोंको जबरदस्ती सम्मिलित करना महापाप है ।

१०. मुझे आशा है कि लगान बहुत कम लोग देंगे । यदि कोई असह्योगी उनका भी तिरस्कार करेगा तो वह पाप करेगा ।

११. बारडोली एक छोटा-सा ताल्लुका है। उसके निवासी सरल हृदय हैं । वे राजनीतिक विषयोंको नहीं समझते। वे बकरीकी तरह सीधे हैं और यह सीधापन ही उनका गुण है। उनमें विवेक है और वे भला-बुरा समझते हैं। वे स्वार्थ और परमार्थका अन्तर समझते हैं। जो समझदार हैं उनको इस लड़ाई में कोई खतरा दिखाई नहीं देता । बकरा कसाईके घर अपने-आप नहीं जाता; तब यदि बारडोलीके स्त्री- पुरुष भोलेपन अथवा श्रद्धा के कारण, अपनी इच्छासे किसी तरहकी जोर-जबरदस्तीके बिना जेल जायेंगे, अपनी सम्पत्ति जब्त होने देंगे, अपने प्राण देंगे और अपने मनमें रोष नहीं लायेंगे तो संसार उनको पूजेगा । वे भारतको स्वराज्य दिलायेंगे और इतिहास में अमर हो जायेंगे ।

१२. मैं मुख्यतः अहमदाबादमें रहता हूँ और वहाँ धन, ज्ञान, चतुरता, व्यापार और साहस आदि गुणोंकी बहुलता है, फिर भी मैंने उसे छोड़कर बारडोली ताल्लुकेको इस लड़ाई के लिए चुना है; इससे इस लड़ाईकी विशेषता प्रकट होती है । यदि बारडोली-जैसा नम्र और सीधा ताल्लुका शान्तिपूर्ण साहसका परिचय देगा तभी स्वराज्य मिलेगा। यह लड़ाई गरीबोंकी, निर्दोष लोगोंकी है। इस लड़ाईमें बकरी जैसे निरीह लोगोंको बाघ-जैसे बली लोगोंके भयसे मुक्त होना है । यह तो तभी होगा जब बारडोलीके लोग लड़ेंगे । अहमदाबाद या बम्बईमें धन होते हुए भी मैं वहाँ निर्भय होकर नहीं लड़ सकता । वहाँ तो मुझे सदा धोखा खाने अथवा हिंसा होनेका भय बना रहेगा। बारडोलीमें मैं निर्भय हूँ । यदि बारडोली मुझे धोखा दे तो मेरी क्या दशा होगी, यह ईश्वर ही जानता है ।

१३. श्री विट्ठलभाईने सविनय अवज्ञाके सम्बन्धमें जो भाषण पहले दिया था उससे उनकी अश्रद्धा प्रकट नहीं होती। वह तो उन्होंने उसका समर्थन करनेके लिए दिया था। उन्होंने अपने उस भाषणसे हमें सावधान किया था और इस बातमें शंका प्रकट की थी कि लोग अन्ततक अहिंसक रह सकेंगे। किन्तु अब जब कि सविनय अवज्ञाका समय आ गया है, उन्हें उस आन्दोलनको चलानेमें क्या आपत्ति हो सकती है ?

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