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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

काफी काम है और काफी विविधता है । लेकिन आप देखेंगे कि यह कार्यक्रम दो भागों में विभक्त है: अहिंसाका प्रसार और खद्दरका प्रचार । इनमें से पहला तो निश्चित रूपसे आन्तरिक परिवर्तनका द्योतक है और दूसरा निश्चय ही बाह्य प्रगतिका सूचक है । भारत संसारके विरुद्ध अहिंसा के बिना अपनी बातपर अड़ा नहीं रह सकता, और जबतक चरखेको सभी लोग नहीं अपनाते तबतक भारत आर्थिक दृष्टिसे स्वतन्त्र नहीं हो सकता ।

क्या आप निकट भविष्यमें सारे भारतका दौरा करनेका विचार कर रहे हैं ?

जहाँतक मैं देख सकता हूँ, निकट भविष्यमें तो नहीं; अलबत्ता अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी बैठक में शामिल होनेके लिए दिल्ली जाना है ।

लोग कहते हैं कि परिस्थितियोंसे मजबूर होकर आपको अपने सभी राजनैतिक कार्य छोड़ने होंगे और अपना शेष जीवन अस्पृश्यता, नशाबन्दी आदि सामाजिक समस्याओं में लगाना होगा। क्या ऐसी कोई सम्भावना है ?

जहाँतक मैं राष्ट्रकी वर्तमान मनःस्थिति समझ सकता हूँ ऐसी सम्भावना नहीं है । अहिंसा के सम्बन्ध में जो नियमभंग मेरे देखने में आये हैं उनके बावजूद भारत ठोस तौर से अहिंसात्मक हो गया है। - मेरा खयाल है कि प्रबुद्ध वर्ग और साधारण जनता, दोनों ही। और जबतक कांग्रेसी लोग प्रस्तुत कार्यक्रमपर अमल करनेको तैयार रहेंगे और जबतक वे अहिंसा तथा चरखेके सिद्धान्तको ठुकराते नहीं हैं तबतक मेरे लिए अपना वर्तमान कार्य छोड़नेकी सम्भावना नहीं है । मेरे लिए राजनीति और धर्ममें कोई धार्मिक भावनाके बिना राजनीति व्यर्थ है; राजनैतिक जीवनमें डूबा हुआ हूँ और मैं जो आज देशके भेद नहीं है । वह इसलिए कि देशको राजनैतिक परिस्थिति राष्ट्रीय जीवनका प्रमुख अंग है। किसी-न-किसी केन्द्रबिन्दुपर राजनैतिक जीवनसे सम्बद्ध हुए बिना [ देशकी ] प्रगति सम्भव नहीं है ।

हिंसा भड़क उठनेकी आशंकाका ध्यान रखते हुए क्या सामूहिक सविनय अवज्ञाका विचार सर्वथा त्याग देना और कम खतरेवाले कामों, जैसे दण्डविधि-संशोधन अधिनियम के अधीन विज्ञप्तियोंकी अवज्ञा करना और कमसे कम एक शहर—मान लीजिए कलकत्तामें संगठनको सर्वांगपूर्ण बनाना और जेलोंको भरना क्या बेहतर नहीं होगा ?

मैं नहीं समझता कि सामूहिक सविनय अवज्ञाका विचार त्याग देना जरूरी है। इस विचार में कोई दोष नहीं है । यह अनैतिक नहीं है । इतना ही नहीं बल्कि यह जनताका अधिकार है जिसे त्यागा नहीं जा सकता। इसका केवल यही अर्थ है कि जनता- को अहिंसात्मक ढंगसे काम करनेका प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। उस विचारमें दोष क्या है ? मैं मानता हूँ कि मैं सामूहिक सविनय अवज्ञा जल्दबाजी में शुरू करने नहीं जा रहा हूँ । मैं खुद सामूहिक सविनय अवज्ञा दुबारा शुरू करनेसे पहले लोगोंसे पूरा- पूरा आश्वासन चाहूँगा । आखिरकार दक्षिण आफ्रिकामें सविनय अवज्ञा सामूहिक सविनय अवज्ञा ही थी; उस आन्दोलनमें कोई अवांछनीय घटना नहीं हुई थी । १९१८ में