पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/४७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



४५४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मर्यादाका उल्लंघन नहीं करेगा तो दूसरे पक्षको निस्सन्देह मर्यादाका पालन करना ही होगा। अतएव यदि नागरिक एक भी कटु वचन बोले बिना अपना काम करते रहेंगे तो वे अवश्य विजयी होंगे। दोनों शहरोंके नागरिकोंका पहला कर्त्तव्य तो यह है कि एक भी राष्ट्रीय स्कूल उनके हाथसे न जाने पाये । उसके लिए तो सिर्फ उत्साही कार्यकर्त्ताओं तथा धनकी आवश्यकता है। यदि हम इन दोनोंको इकट्ठा न कर पाये तो हम निश्चय ही पराजित होंगे ।

ढसा दरबारका सत्याग्रह

देसाई गोपालदास काठियावाड़में ढसा नामक गाँवके दरवार हैं ।[१]वहाँके लोगोंका जीवन अत्यन्त सरल और सुखी है । दरबार और प्रजाके बीच पिता-पुत्र जैसा मीठा सम्बन्ध है । ढसामें स्वदेशी, अस्पृश्यता निवारण आदि आन्दोलन बड़े जोरोंसे चल रहे हैं । लेकिन जब अब्बास साहबने खेड़ा जिलेकी व्यवस्था अपने हाथमें ली तब पाटीदार होने की वजहसे देसाईजी अपनेको रोक न सके और अपनी धर्मपत्नीको ढसाका कार्यभार सौंपकर खेड़ा जिलेके आन्दोलनमें कूद पड़े । उनके और कमिश्नर के बीच हुए पत्र-व्यवहारको सबने देखा है। देसाईजी द्वारा लिखे प्रत्येक पत्रमें उनका सत्याग्रह उभरकर सामने आ जाता है । राष्ट्र ऐसे लोगों के त्यागसे ही उन्नति करेगा । जापानके अमीर-उमरावोंने जब अपनी जागीरें और अपना सर्वस्व राष्ट्रको अर्पण कर दिया तब देखते-देखते जापानका वातावरण बदल गया । गरीब लोग भी इस त्यागके महत्त्वको समझ गये और सब राष्ट्रके कार्य में जुट गये । इसी तरह जब हिन्दुस्तानमें अनेक दरबार और जागीरदार राष्ट्रके लिए त्याग करने लगेंगे तब गरीब और अमीरके बीच जो संगम होगा उसे देखकर संसार चकित हो उठेगा। असहयोग आन्दोलन में फिलहाल तो मुख्यरूपसे गरीब और मध्यम वर्गके लोग ही भाग ले रहे हैं। यह बात देशके लिए कुछ हदतक खतरनाक भी है। यदि धनिक वर्ग भी इस आन्दोलनमें पूरा-पूरा भाग ले तो इस समय जो विषम स्थिति उत्पन्न हो गई है वह भी दूर हो जाये । उसके लिए साहस और क्षत्रियत्वकी आवश्यकता है। देसाईजीने इन दोनों गुणोंका परिचय दिया है । मुझे उम्मीद है कि दूसरे लोग भी उनके इस उदाहरणसे शिक्षा ग्रहण करेंगे ।

गोविन्दजी वसनजीका मामला

बम्बई के सुप्रसिद्ध मिठाईवाले गोविन्दजी वसनजी जेलमें विराजमान हैं। इस मामलेपर मैं काफी पहले लिखना चाहता था लेकिन मेरे पास मामलेके कागजात नहीं थे, इसलिए ऐसा करनेमें असमर्थ रहा । कागजात मुझे अभी-अभी प्राप्त हुए हैं।

श्री गोविन्दजीको जेलमें छः महीने आराम करना है। उन्हें सपरिश्रम कारावासका दण्ड मिला है, इस बातका मैं और भी अधिक स्वागत करता हूँ । सादी कैद भोगनेवाले वस्तुतः कैद नहीं भोगते, ऐसा मेरा अनुभव है । जेलका आनन्द तो सपरिश्रम कारा- वासका दण्ड पानेवालों को ही मिलता है । सादी कैदवालों के ऊब जानेकी सम्भावना रहती है। परिश्रम करनेवालों के दिन आसानीसे गुजर जाते हैं । हमारा मन जेलको

  1. गुजरात-काठियावाड़ में छोटी रियासतों के राजाओं के लिए प्रचलित शब्द ।