पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/४९१

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गांधी और शंकरन नायर, सर विश्वेश्वरैया और अन्य कई लोग आ पहुँचे हैं । आज कई घंटे तक आरम्भिक ढंगकी चर्चा चलती रही। आशा है, इसका कुछ अच्छा ही परिणाम निकलेगा ।
पूर्णतया प्रसन्नचित्त रहना । जेलमें अपने किसी भी सहयोगीको ऐसा कोई खयाल न होने देना कि तुम्हारी सजा छः महीनेकी सख्त कैदसे बदलवाकर सादी कैद कराने में मेरा कोई हाथ है। मैंने तुम लोगोंकी सजाओंके बारेमें किसीसे भी कोई शिकायत नहीं की, हालांकि इनकी क्रूरता देखकर मुझे दुःख अवश्य हुआ है।
मैं इलाहाबाद लौटने पर तुम दोनोंसे जेलमें मुलाकात करनेकी सोच रहा था। पर अब तो तुम्हें आगरा जेल भेज दिया गया है, इसलिए अभी कुछ दिनोंतक मुलाकात शायद न हो पाये। पर इससे कोई विशेष अन्तर नहीं पड़ता । तुम्हें यह जानकर दिली खुशी होगी कि अगले कुछ महीनोंके लिए मेरे हाथमें बहुत काफी काम है। शेष अगले पत्र में ।

गोविन्दने पत्रकी एक प्रति मेरे पास भेजते हुए लिखा है कि सम्मेलन बुलाने के सिलसिले में भेजा गया परिपत्र कृष्णकान्तको नहीं दिया गया था। उसने यह भी लिखा था कि मैं पण्डितजीकी अनुमति लिये बिना दोनों पत्रोंको प्रकाशित न करूँ । इन दोनों पत्रोंको मैंने सार्वजनिक दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण समझा, और इसलिए मुझे लगा कि इन्हें प्रकाशित कर देना चाहिए । सो आवश्यक अनुमति लेकर मैंने दोनों पत्र जनताके लाभ के लिए प्रकाशित कर दिये हैं । मेरी दृष्टिमें ये दोनों पत्र बड़े कीमती हैं। ये इस बात उदाहरण हैं कि कौटुम्बिक जीवन कैसा होना चाहिए। मालवीय परिवारके भिन्न-भिन्न व्यक्तियोंमें परस्पर कितनी सहिष्णुता है तथा तरुण लोग किस प्रकार अपनी स्वतन्त्रताको कायम रखते हैं और किस प्रकार बुजुर्ग लोग उन्हें पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान करते हैं । इसके अतिरिक्त इन पत्रोंसे पण्डितजीके चरित्रकी उदात्तता प्रकट होती है । यदि आज वे जेलमें नहीं हैं, तो इसका कारण यह नहीं कि वे जेलसे डरते हैं, बल्कि यह है कि अभी उन्हें जेलका मार्ग ठीक नहीं दिखाई दिया है । उनके निकट सम्पर्क में रहनेवाला ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता कि वे आजकल परस्पर विरोधी कर्त्तव्योंको लेकर उठे मानसिक द्वन्द्वसे कितने अधिक पीड़ित रहते हैं और कितने चिन्ताग्रस्त रहते हैं ? मुझे अक्सर यह लगा करता है कि यदि उन्हें जेल भेज दिया जाये तो इन लगातार चिन्ताओं और झंझटोंसे, जो कि उनके जैसा सार्वजनिक जीवन व्यतीत करनेवाले के पीछे लगी रहती हैं, उन्हें निश्चय ही छुटकारा मिल जायेगा ।

मैंने इन दोनों पत्रोंको इसलिए प्रकाशित किया है कि असहयोगी लोग आम तौरपर सहिष्णुताका महत्त्व समझें । मेरा यह विश्वास है, और मैं चाहता हूँ कि पाठक भी इसे स्वीकार करें कि यद्यपि पण्डितजीके सदृश देशकी सेवा करनेवाला कोई भारतीय आज मौजूद नहीं है, तथापि इंडिपेंडेंटोंमें तथा नरम दलमें ऐसे भी लोग हैं जो हमसे सहमत नहीं हो पाते। इसलिए नहीं कि वे कमजोर हैं; बल्कि इसलिए