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'१८७. गर्जन-तर्जन[१]

जब ब्रिटिश सिंह बार-बार हमें अपना खूनी पंजा दिखा रहा है तब कोई समझौता कैसे हो सकता है ? लॉर्ड बर्केनहेडने[२]हमें चेतावनी दी है कि ब्रिटेनका " प्रचण्ड बाहुबल" अभी तनिक भी कम नहीं हुआ है। श्री मॉन्टेग्यु बड़े स्पष्ट शब्दोंमें कहते हैं कि अंग्रेज इस संसारमें संकल्प के सबसे धनी लोग हैं; अपनी लक्ष्य-सिद्धिके मार्ग में वे किसी तरह की विघ्न-बाधा सहन नहीं करेंगे। अब मैं रायटर द्वारा भेजे तारके आधारपर ठीक उन्हींके शब्द उद्धृत कर रहा हूँ :

यदि साम्राज्यके अस्तित्वको कोई चुनौती दी जायेगी, यदि भारतके प्रति अपने दायित्वोंका निर्वाह करने में ब्रिटिश सरकारके मार्गमें रोड़े अटकाये जायेंगे, यदि कोई माँग इस भ्रम में पड़कर की जायेगी कि हम भारतको छोड़ जानेकी सोच रहे हैं तो में बता देना चाहता हूँ कि अंग्रेज इस संसारमें संकल्पके सबसे धनी लोग हैं और भारतकी ऐसी कोई भी चुनौती उनके सामने सफल नहीं होगी। वे एक बार फिर अपनी समस्त शक्ति और संकल्पसे उस चुनौतीका जवाब देंगे ।

लॉर्ड बर्केनहेड तथा श्री मॉन्टेग्युको शायद यह मालूम नहीं कि इंग्लैंड सात समुद्र पारसे यहाँ जितना भी "प्रचण्ड बाहुबल" ला सकता हो, यह देश उस सबका सामना करने को तैयार है। उन्हें शायद नहीं मालूम कि वे जिस चुनौतीकी चर्चा कर रहे हैं वह तो कलकते में सितम्बर, १९२० में दी जा चुकी है।[३]वह चुनौती यह है कि पंजाब तथा खिलाफत के प्रति किये गये अन्यायोंके पूर्ण निराकरण तथा स्वराज्यसे कम कोई भी चीज भारतको सन्तुष्ट नहीं कर सकती । और इसमें कोई सन्देह नहीं कि इस चुनौती के साथ साम्राज्य के अस्तित्वका प्रश्न भी जुड़ा हुआ है । ब्रिटिश साम्राज्य- का अस्तित्व अब इस बातपर निर्भर करता है कि उसे सहज और शान्तिपूर्ण ढंगसे स्वतन्त्र राष्ट्रोंके एक ऐसे कुलका रूप लेने दिया जाता है या नहीं, जिसमें प्रत्येक सदस्यको समान अधिकार हों, प्रत्येकको यह हक हो कि वह जब चाहे अपनी इच्छा- से पारस्परिक सम्मान तथा मैत्री भावपर आधारित इस साझेदारीसे अलग हो जाये । यदि ब्रिटिश साम्राज्यके वर्तमान संरक्षकोंको यह सहज परिवर्तन स्वीकार नहीं तो वे याद रखें कि संसारमें अपने "संकल्प के सबसे धनी लोगों" की समस्त शक्ति और संकल्प भारतमें आकर व्यर्थ हो जायेंगे, उनका प्रचण्ड बाहुबल" यहाँ उनके किसी

  1. प्रस्तुत लेख उन लेखोंमें से है जिनके लिए गांधीजीपर १९२२ में मुकदमा चलाया गया था और कैद की सजा दी गई थी ।
  2. १८७२-१९३०; इंग्लैंडके वकील, राजनीतिज्ञ तथा विद्वान् लेखक; पहले लॉर्ड चान्सलर और बादमें भारत-मन्त्री ।
  3. कांग्रेसके विशेष अधिवेशनमें ।

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