पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/५०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

१८८. मिलका कपड़ा

एक सवाल अक्सर पूछा जाता है कि यदि हाथ-कती और हाथ-बुनी खादी. फिर वह चाहे सूती हो या ऊनी अथवा रेशमी—इस्तेमाल करना ही वर्तमान कालका धर्म हो तो फिर देशकी अर्थ-व्यवस्थामें मिलके कपड़ेका क्या स्थान है। यदि देहातों में रहनेवाले करोड़ों लोग आज चरखेका सन्देश सुन सकें, उसका रहस्य समझ सकें और उसपर अमल भी कर सकें, तो मैं जानता हूँ कि हमारी घरेलू अर्थ-व्यवस्थामें मिलके कपड़े के लिए - फिर वह चाहे विदेशी हो या हिन्दुस्तानी— कोई जगह नहीं है और यदि ऐसा हो सके तो मिलके कपड़े के इस पूर्ण लोपसे देशकी दशा बेहतर ही होगी ।

इस कथनका सम्बन्ध न तो मशीनोंसे है न विदेशी कपड़े के बहिष्कारके प्रचारसे । यह तो केवल भारतीय जनताकी आर्थिक दशासे सम्बन्धित प्रश्न है ।

लेकिन मिलोंके कपड़े के पूर्ण लोपकी स्थिति तो तभी आ सकती है जब हमारे त्राणके लिए स्वयं ईश्वर ही कोई चमत्कार दिखाये और सारे देशकी जनताको अपने कष्टों से मुक्ति पाने के लिए चरखेकी शरण में जानेकी प्रेरणा दे । लेकिन जबतक यह चमत्कार नहीं होता तबतक कमसे कम अभी कुछ वर्षोंतक तो खद्दरके उत्पादनके साथ ही मिलोंके बने कपड़े की जरूरत बनी ही रहेगी। काश कि भारतके बड़े-बड़े मिल- मालिकोंको हम यह समझा सकते कि मिल उद्योग एक राष्ट्रीय न्यास है और इससे उन्हें राष्ट्रीय जीवनमें इस उद्योगके उचित स्थानकी सही प्रतीति हो जाती । मिल- मालिकोंको जनताको हानि पहुँचाकर पैसा पैदा करनेकी इच्छा नहीं करनी चाहिए, इसके विपरीत उन्हें अपने व्यवसायको राष्ट्रीय आवश्यकताओंके अनुकूल साँचे में ढालना चाहिए और उस कलंकको धो देना चाहिए जो बंग-भंग आन्दोलन[१] के समय उनके माथेपर लगाया गया था और जो ठीक भी था । अब भी कलकत्ता तथा दूसरे स्थानोंसे ऐसी शिकायतें आ रही हैं कि हिन्दुस्तानकी मिलें अपनी धोतियोंके दाम मैंचेस्टरवालों से भी अधिक लेती हैं, यद्यपि उनकी धोतियाँ मँचेस्टरवालों से घटिया दरजेकी होती हैं । यदि यह खबर सच हो तो यह बात देशभक्ति के विरुद्ध पड़ती है और धन बटोरने की इस नीति से देश और देश-कार्य दोनोंको हानि पहुँचनेकी सम्भावना है । ऐसे समय, जब कि हमारा राष्ट्र नये जन्मके कष्टोंसे गुजर रहा है, बेहिसाब दाम लेना निश्चय ही खोटापन है। ऐसा करना केवल इस जन-आन्दोलनसे अलग रहना ही नहीं, बल्कि सचमुच उसकी निर्दयतापूर्ण उपेक्षा करना है ।

मिल-मालिक यदि स्थितिपर व्यापक दृष्टिसे विचार करें तो वे खादी आन्दोलनका रहस्य समझ जायेंगे, उसकी कद्र करेंगे और उसका पोषण करेंगे तथा लोगोंकी जरूरतोंको जान-समझकर देशकी नवीन आवश्यकताओंके अनुरूप माल तैयार करने लगेंगे ।

 
  1. १९०५ में ।