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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

मैं सबसे पहले तो यह बात बिलकुल स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि तथाकथित भारतीय ईसाई ज्यादातर तो पश्चिम के लोगों द्वारा निर्मित समुदाय है।…भारतमें जिन दो चीजोंने ईसाइयोंमें अराष्ट्रीयता भरनेका कार्य सम्पन्न किया है वे हैं: (१) पश्चिमसे आई हुई मिशनरी संस्थाएँ तथा (२) हमारे अपने ही हिन्दू तथा मुसलमान भाई । …हमारे हिन्दू तथा मुसलमान सम्बन्धियोंने हमें भिन्न धर्म अपना लेनेके कारण बहिष्कृत कर दिया।

मिशनरियोंके प्रभाव में आकर भारतीय ईसाइयोंने अंग्रेजी रहन-सहन अपना लिया और वे अपने-आपको कुछ बहुत विशिष्ट मान बैठे और इससे उनकी रही-सही देशभक्ति तथा राष्ट्रीय भावना भी नष्ट हो गई। …यह तो भगवान्‌की दया ही है कि मिशनरियों द्वारा हमें भटकाए रखने की कोशिशोंके बावजूद हमारे समुदाय में अन्ततः सच्ची जागृति आई और अब शिक्षा तथा समृद्धिके बढ़ते हुए साधनों से अपनी मातृभूमिको सेवाका सच्चा भाव भी हमारे समुदायमें तेजी से विकसित होता जा रहा है। …कुछ भारतीय ईसाई अपने-आपको यूरोपीयों तथा आंग्ल-भारतीयोंसे भी अधिक विदेशी समझने में गौरव मानते हैं। किन्तु सच्चे भारतीयोंको तो इनके प्रति सहिष्णु ही रहना चाहिए…उनके साथ मित्रों जैसा बरताव करके सिद्ध कर दीजिए कि सभी भारतीय चाहे वे हिन्दू, मुसलमान, पारसी अथवा ईसाई कोई भी हो सब एक ही माँकी सन्तान और परस्पर सच्चे भाई व सच्ची बहनें हैं। अपने ईसाई बन्धुओंको अपने सच्चे प्रेमका आश्वासन दीजिए और आप देखेंगे कि यदि भारतीय ईसाई एक बार देशप्रेमको भावनासे प्रेरित हो गये तो वे देश-सेवामें अपना जीवन भी अर्पित कर देंगे। वे उसकी स्वतन्त्रताके पुनीत युद्धमें अपना रक्त बहा देने में भी आगा-पीछा नहीं करेंगे।

आपका,
भारत माँका एक ईसाई बेटा

हिन्दू-मुसलमानोंसे किये गये अनुरोधके विचारसे मैं यह पत्र, व्यक्तिगत उल्लेख के दो अंशोंको[१] छोड़कर, सहर्ष प्रकाशित कर रहा हूँ। यूरोपीय मिशनरियोंके विषय में अनुचित रूपसे किये गये उल्लेखको मैं पसन्द नहीं करता। यद्यपि लेखकने उनके विषयमें जो कुछ कहा है वह अधिकांशतः सही ही है; फिर भी बहुत-से यूरोपीय मिशनरी न तो भारतीय विरोधी हैं, न हिन्दू और मुसलमान विरोधी ही। राष्ट्रवादियोंके समक्ष मार्ग स्पष्ट है। उन्हें अपने विशुद्ध प्रेम द्वारा सभी अल्पसंख्यकोंको अपनी ओर करना है; अंग्रेज भी इनमें आ जाते हैं। भारतीय राष्ट्रीयता, यदि उसे अहिंसक रहना है तो एकांगी नहीं हो सकती।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १५-१२-१९२१
  1. यहाँ और भी बहुतसे अंश छोड़ दिये गये हैं।