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भेंट : पत्र प्रतिनिधियोंसे


बराबर बढ़ती ही रही है, समयको पहचानकर चेतेंगे और जापानी सामुराईका[१] उदाहरण सामने रखते हुए थोड़ेसे स्वार्थत्यागकी आवश्यकताको अनुभव करेंगे। मैं विदेशी कपड़ेके व्यापारको त्याग देना केवल छोटी बात इसलिए समझता हूँ कि अगर ये व्यापारी खादी के उत्पादन और व्यवसायका कार्य आरम्भ कर दें तो यह उनके लिए प्रतिष्ठायुक्त जीविकाका साधन हो जायेगा और फिर शान्तिमय धरनेकी कोई आवश्यकता ही न रह जायेगी। अगर वे थोड़ा सहयोग-भर दें तो मैं देश में श्रेष्ठ स्त्री-पुरुषोंको विदेशी कपड़ेके धरनेसे हटाकर खादी के निपुण कातने, धुनने और बुननेवाले बन जानेके लिए तथा बहुत शीघ्रतासे खादी बनाने के लिए प्रेरित करना पसन्द करूँगा ।

दूसरा संशोधन यह हुआ है कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने प्रान्तीय कमेटियों- को यह अधिकार दे दिया कि वह व्यक्तिगत सविनय अवज्ञाकी इजाजत दे सकती है-चाहे वह रक्षात्मक हो, चाहे आक्रामक । किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि प्रान्तोंको इस प्रकारकी अवज्ञामें फौरन लग जाना चाहिए। इससे प्रत्येक प्रान्तको यह पूर्ण अधिकार-भर मिला है कि यदि आवश्यकता समझी जाये और यदि प्रान्त में अहिंसाका वांछित वातावरण मौजूद हो तो वह प्रान्त ऐसा कर सकता है। यद्यपि प्रान्तोंको उनका वह स्वायत्ताधिकार फिरसे मिल गया है जो उन्हें दिल्लीमें[२] गत नवम्बर में दिया गया था तथापि मेरा उनसे आग्रहपूर्ण निवेदन है कि वे पूरी तौरसे विचार किये बिना जल्दी में आकर कोई काम न करें । निश्चय ही मेरी तो यह सलाह है कि अगर सविनय अवज्ञाकी नितान्त आवश्यकता प्रतीत न हो तो वे थोड़ा विश्राम कर लें और स्वयंसेवकोंकी सूचियों में से ऐसे नाम निकाल दें जो कांग्रेसकी प्रतिज्ञाके प्रति पूर्ण आस्था नहीं रखते ।

यदि प्रान्तीय कमेटियाँ व्यक्तिगत अवज्ञाको पुनः आरम्भ करनेके पहले अपने- अपने घरको सँभालें और इस बातका इतमीनान कर लें कि हर अवस्थामें पूर्ण रूपसे अहिंसा, कर्मणा ही नहीं मनसा और वाचा भी रखी जा सकेगी तो इस आन्दोलनकी शक्ति उस हालत में बहुत कुछ बढ़ जायेगी । यद्यपि पूरे देशपर नजर डालें तो यह कहना बिलकुल ठीक होगा कि देश में अहिंसात्मक भावनाओंकी काफी वृद्धि हुई है तथापि अभी उन्नति करनेकी गुंजाइश बनी हुई है और अभी तो सदा इस बातकी आशंका बनी रहती है कि कहीं गड़बड़ी न हो जाये । सामूहिक और व्यक्तिगत दोनों ही प्रकारकी सविनय अवज्ञाके लिए आदर्श व्यवस्था वही है जब सर्वथा शान्ति रहे । अवज्ञा प्रदर्शनात्मक न हो। यदि कोई गिरफ्तार हो जाये तो उसके साथ-साथ भीड़के जानेकी कोई जरूरत नहीं है । जनताकी अब भी यह इच्छा है कि अदालतों में भीड़ लगाई जाये या जो लोग जेलमें ले जाये जा रहे हैं वे उनके पीछे-पीछे भीड़ लगाकर चले ।

 
  1. जापानकी एक लड़ाकू जाति ।
  2. देखिए खण्ड २१, पृष्ठ ४३२-३५ ।