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टिप्पणियाँ


हम शायद सबसे अधिक अपने शरीरको ही पूजते हैं। पर यहाँ, इस टिप्पणीमें, मैं उस मूर्तिपूजापर विचार नहीं कर रहा हूँ जो उचित और शास्त्र सम्मत है । मैं तो यह सब केवल उस पापमय कृत्य की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए लिख रहा हूँ जो दक्षिणमें कहीं-कहीं शूरू हो गया लगता है-मेरे चित्रको धार्मिक रथ-यात्राओंमें निकाला गया है। श्री एन्ड्रयूजने तार भेजकर मेरा ध्यान इस तथ्यकी ओर खींचा है कि यदि यह व्यापार चलता रहा तो इससे दंगा तक हो सकता है, क्योंकि सभी इस बातको सहन नहीं कर सकते कि धर्म सम्बन्धी उत्सवोंमें ऐतिहासिक व्यक्तियों या जीवित पुरुषोंके चित्र रथोंपर निकाले जायें। प्रचलित मूर्तियोंकी जगह मेरे चित्र रखना, मेरी दृष्टिमें घोर अपराध है । इससे इन अन्धे श्रद्धालु लोगोंको तो कोई लाभ होगा नहीं, पर यह उन भक्तोंके प्रति, जो अपनी आराध्य मूर्तियोंका अपमान सहन नहीं कर सकते, हिंसा होगी। अति प्राचीन कालकी दिव्यात्माओंकी मूर्तियोंको पूजने के लिए लोगोंके पास काफी कारण होता है । पर यदि किसीसे जीवित व्यक्तियोंके प्रति अपनी भक्ति उस रूपमें प्रकट करने के लिए कहा जाये, जिस तरह कि मद्रास अहाते में कहीं-कहीं किया गया है तो उसे यह बात बहुत ही अटपटी लगेगी। यदि हमारा लक्ष्य लोकतन्त्रीय भावनाकी यथार्थ अभिव्यक्ति है, तो इस तरहकी अन्धी या आत्यंतिक वीर-पूजाके लिए उसमें कोई स्थान नहीं है । इसलिए मेरा प्रत्येक कांग्रेस कार्यकर्त्तासे यह अनुरोध है कि वह जब भी इस तरहकी अन्धभक्ति देखे, उसको तरह न दे और सभी उचित उपायोंसे लोगोंको उससे विरत करे ।

बेकारको धमकी

श्रीमती सरोजिनी नायडूका[१]यह विशेष सौभाग्य प्रतीत होता है कि उनपर मुकदमा चलाने की धमकी दी गई है या कमसे कम अपने वक्तव्योंका प्रतिवाद करनेको कहा गया है । स्मरण रखना चाहिए कि मार्शल लॉके दिनोंमें किये गये सरकारी कृत्योंके बारेमें उन्होंने जो आरोप लगाये थे, श्री मॉन्टेग्युने उन्हें मानने से इनकार कर दिया था । उस चुनौतीको स्वीकार करते हुए श्रीमती नायडूने कांग्रेस जाँच आयोगकी रिपोर्टसे विस्तृत उद्धरण दिये थे । यदि उनका कथन ठीक नहीं है, तो इसकी जिम्मे- दारी कांग्रेस आयोगके सदस्योंपर है न कि उनपर । उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि इंडिया ऑफिस पूर्ण रूपसे यह भी नहीं जानता कि उस रिपोर्ट में क्या-क्या लिखा है ।

इस बार मद्रास सरकारने उनपर मुकदमा चलानेकी सचमुच धमकी दी है । मैं चाहता हूँ कि वह अपनी धमकी पूरी कर दिखाये । तब भारतको, अपनी पैरवी आप ही करनेवाली इस भारतीय कवयित्री के वक्तव्यको सुननेका एक दुर्लभ अवसर मिलेगा। पर, कचहरीमें इस असहयोगी कवयित्रीको सुनने के लिए इतनी भीड़ उमड़ पड़ेगी कि वह मुकदमा या तो किसी खुले मैदानमें चलाना होगा (उसमें कोई हर्ज नहीं है) या फिर जेलके भीतर। पूरे हिन्दुस्तानमें कोई भी भवन या कमरा इतना बड़ा नहीं है जिसमें वह सारा जनसमूह, जो बरतानवी पिंजरे में बन्द बुलबुले-हिन्दको एक नजर देखने के लिए आतुर होगा, समा सके ।

 
  1. १८७९-१९४९; कवयित्री; १९२५ के कांग्रेस अधिवेशनको अध्यक्षा ।