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१९९. सरकार द्वारा प्रतिवाद

१. जेलोंमें कोड़ोंकी मार

सम्पादक
'यंग इंडिया'
प्रिय महोदय,
१७ फरवरी, १९२२ के अपने पत्र संख्या ४०२ -सी के बाद अब मैं आपका ध्यान पत्रके रूपमें लिखे गये श्री महादेव देसाईके उस लेखकी ओर खींचना चाहता हूँ जिसका शीर्षक आपने 'जेलोंमें कोड़ोंकी मार' दिया है और जिसे आपने गत १९ जनवरीके अपने अंकमें छापा है। उस पत्रमें कोड़े लगानेकी छः घटनाओंका विवरण दिया गया है और भाव यह निकलता है कि उनका सम्बन्ध राजनीतिक कैदियोंसे था। इनमें से दो स्थानोंपर कुछ व्यक्तियोंके नाम दिय गये हैं। ये नाम है कैलाशनाथ और लछमीनारायण शर्मा । नैनी सेन्ट्रल जल सुपरिटेंडेंट से पूछताछ की गई...मैं दावेसे कह सकता हूँ कि कैलाशनाथ या लछमीनारायणको, जिनके नाम आपके द्वारा प्रकाशित पत्रके लेखकने दिये हैं, नैनी जेलमें कभी कोड़े नहीं लगाये गये, और न उन्हें कोई अन्य सजा ही दी गई है। कैदी नम्बर १४८८ कैलाशनाथको, कठोर कारावासका दण्ड भोगते हुए भी कामसे इनकार करने पर, केवल 'चेतावनी' दी गई थी।

लखनऊ

१८-२-१९२२

भवदीय,
जे० ई० गोंडगे
प्रचार आयुक्त

सरकारका यह साफ इनकार[१] नितान्त अविश्वसनीय है । जो वक्तव्य विशुद्ध चरित्र वाले एक जनसेवी द्वारा दिये गये हैं उनका खण्डन पूर्ण और निष्पक्ष जांच कराये बिना कदापि स्वीकार नहीं किया जा सकता, विशेषकर जब वह खण्डन ऐसे व्यक्तियों द्वारा प्रस्तुत किया गया हो जिनका उसमें कोई स्वार्थ निहित है । मैं पाठकोंका ध्यान इस तथ्य की ओर दिलाना चाहता हूँ कि इलाहाबादके 'इंडिपेंडेंट' में इस आशयका एक वक्तव्य छपा है कि जेलके एक अधिकारीने श्री लछमीनारायणको कोड़े लगाने की बात एक कांग्रेसी के आगे स्वीकार कर ली है । सम्भव है कि जेल अधिकारीका 'कोड़े लगाने की बात से इनकार करना बाक्छल ही हो। 'यंग इंडिया 'में जो पत्र छपा है, वह अनुवाद है। गुजरातीमें इंटर लगाने, कोड़े लगाने और बेंत लगानेके लिए एक ही

 
  1. यहाँ केवल कुछ अंश ही दिये गये हैं ।