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झूठसे भरा एक इश्तिहार

 

है, जिसमें ३० बेंत और दस दिनके लिए आड़ी छड़दार बेड़ियाँ भी शामिल थीं, जिसकी वजह बेहद उद्दण्डता और कामसे बराबर इनकार करना था। वह इस समय तीन महीनेका एकाकी कारावास भोग रहा है। यह सजा उसे अण्डमान में कामसे इनकार करने और हुक्म न मानने पर दी गई थी। उसकी 'हिस्ट्री शीट' में उसे "हिंसक स्वभावका" व्यक्ति बताया गया है।

२० फरवरी, १९२२

मैं इसे पाशविक दण्डकी एक बेरहमीसे भरी सफाई कहना चाहता हूँ । यह जनता से साफ-साफ यह कहना है कि "हाँ, हमने ऐसा किया है और हम बराबर ऐसा करते रहेंगे।” मैंने यह घटना सरकारको सुधारनेकी दृष्टिसे प्रकाशित नहीं की थी । इसलिए इस लज्जाविहीन स्वीकृतिसे मुझे क्षोभ नहीं हुआ है । पाठकको इस बातपर ध्यान देना चाहिए कि इस सारी विज्ञप्ति में एक भी आरोपको अस्वीकार नहीं किया गया है। कैदीका नाम या ब्योरा सही था या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । ये तथ्य कि कैदीको तीन दिनतक भूखा रहना पड़ा, उसे अपने हाथ अपमानजनक ढंगसे फैलाने होते थे, उसे एक महीने टाटके कपड़े और तीन महीने डण्डा बेड़ी पहननी पड़ी, तीस बेंत खाने पड़े, और यह कि इस समय वह तीन महीने के लिए एकाकी कारा- वासका दण्ड भोग रहा है; 'हिन्दू' में लगाये गये आरोपोंकी पर्याप्त पुष्टि कर देते हैं। मैं यह मानने के लिए तैयार हूँ कि हर कैदी, जिसे जेलमें सजा मिलती है, सरकारी भाषामें उग्र स्वभावका हुआ करता है।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, २-३-१९२२

२००. झूठसे भरा एक इश्तिहार

दिल्ली में मुझे एक इश्तिहार दिया गया था :

असहयोगियोंके लिए महात्मा गांधीका सन्देश
हड़तालें बन्द करो
असहयोगकी सभी कार्रवाइयाँ रोक दो
दिल्लीके नागरिको !
सैकड़ों और हजारोंकी संख्यामें आओ !
हिज रायल हाइनेस प्रिंस आफ वेल्सका स्वागत करो !!

इससे केवल यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यह इश्तिहार सरकार द्वारा या उसकी तरफसे जारी किया गया है। काश कि मैं सचमुच इस तरहका सन्देश दे सकता । पर स्थिति यह है कि दुर्भाग्यवश मुझे इससे बिलकुल उलटा सन्देश देना पड़ा है। बारडोली के प्रस्तावों में हड़ताल सम्बन्धी निर्णय खास तौरपर जैसाका - तैसा रहने दिया गया था । असहयोगकी कार्रवाइयाँ स्थगित नहीं की गई थीं । केवल उग्र किस्मकी सविनय अवज्ञा और उसके लिए उग्र किस्मकी तैयारियाँ ही स्थगित की गई थीं। इस इश्तिहारमें झूठी बातें तो हैं ही, पर संयोजक यह भी नहीं सोच पाये