पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५१
टिप्पणीयाँ

अगर पुलिस, जैसी इन पत्रोंमें बताई गई है, सचमुच वैसी ही भ्रष्ट है तो इसमें भी दोष हमारा ही कहा जायेगा । इन अत्याचारोंको बरदाश्त करनेवाले हम हैं अथवा अन्य कोई ? पुलिसमें भी हमारे अपने ही भाई हैं और यदि हम पुलिस-मात्र-को ही अपना शत्रु मानें और बदमाशोंके लिए उत्तरदायी न हों तो हम राज्य किस तरह चलायेंगे ? स्वराज्य में ऐसी भ्रष्ट पुलिस तथा बदमाशोंपर कौन नियन्त्रण रख सकेगा ? यदि हमारी कल्पनाके स्वराज्यमें अंग्रेज होंगे तो वे जनता के सेवक होंगे और हमारे भाइयोंके समान रहेंगे । उस समय उनपर निर्दोष लोगोंकी रक्षा करनेकी जिम्मेदारी नहीं डाली जा सकेगी । फिर ऐसे लोगोंपर अंकुश कौन रखेगा ?

क्षणभर विचार करनेसे ही हमें मालूम हो जायेगा कि हम जबतक पुलिसपर और जिन्हें हम मवाली तथा बदमाश समझते हैं उन लोगोंपर अपना प्रभाव नहीं डाल सकते तबतक हम स्वराज्य प्राप्त नहीं कर सकते । उन्हें दबाकर सरकार राज्य चला सकती है । हम तो उन लोगोंको प्रेमसे वशमें करके अथवा हम उनसे भी अधिक बदमाश और अत्याचारी बनकर ही राज्य चला सकेंगे । तीसरा रास्ता यह है कि हम उन्हें दण्ड देकर राज्य चलायें । अगर हमारी ऐसी इच्छा हो तो भी हममें वैसी शक्ति नहीं है । इसका अर्थ यह हुआ कि हम या तो वैसी शक्ति प्राप्त करने के लिए दो-चार सौ वर्ष रुकें और बादमें स्वराज्यका विचार करें अथवा उन्हें आजसे ही प्रेमसे वशमें करें ।

मवाली-वर्गके अस्तित्व-मात्र से ही यह मालूम होता है कि इस समय अधर्म और पाखण्डका प्राधान्य है । इस पाखण्डको बढ़ाकर तो हम कदापि स्वराज्य प्राप्त नहीं कर सकते । इस अधर्मको धर्म द्वारा दूर करके ही हम भारतमें शान्तिका उपभोग कर सकते हैं । ब्रिटिश साम्राज्यको हम जो बरदाश्त करते हैं उसका कारण ही यह है कि ब्रिटिश साम्राज्य अधिकांशतः मवाली-वर्गको दबाकर दुर्बल प्रजाकी रक्षा करता है । लेकिन मैं उसका विरोध करता हूँ; उसका कारण यह है कि वह प्रजासे इस रक्षाकी कीमत इतनी अधिक लेता है कि वह स्वयं अब मवाली राज्य-जैसा हो गया है । दूसरे शब्दों में कहें तो हमें इस रक्षाकी कीमतके रूपमें अपनी प्रतिष्ठाका त्याग करना पड़ता है । हम इस अत्याचारसे मुक्त होनेके लिए यदि मवालियोंकी सहायता प्राप्त करनेकी कोशिश करें तो भी मरते हैं, और यदि उन्हें छोड़ देते हैं तो भी मरते हैं । हमें उन्हें उनकी खुशामद किये बिना प्रेमसे जीतना चाहिए और उनसे डरना छोड़ देना चाहिए । दूसरे शब्दोंमें हमें उन्हें धार्मिक बनाना चाहिए । यदि उनमें से थोड़ेसे लोग धार्मिक बन जायें तो दूसरोंको उनका अनुकरण करनेमें कोई देर न लगेगी । जो सिद्धान्त उनपर लागू होता है वहीं पुलिसपर भी लागू होता है । हम पुलिससे किसलिए डरें ? वह अगर श्वेत टोपी पहनकर भी आये तो किसे छल सकती है ? आप भला तो जग भला । हम इतने कायर क्यों बनते हैं कि कोई भी हमें छल सके । मान लीजिये कि पुलिसने खादीका वेश धारण करके किसीपर अत्याचार किया । इससे हम उत्तेजित क्यों हों ? हम उससे विनती करें । अगर वह न माने तो हम प्रयत्न करना छोड़ दें । हममें अगर उतना बल हो तो उसे अत्याचार करनेसे रोकने में अपने प्राणोंको उत्सर्ग कर दें । यदि हम ऐसा करते हैं तो हम बहादुर सिद्ध होते हैं। पुलिस हमारी