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जेल डायरी, १९२२

जैसा कि मैंने लिखा वैसा नहीं भेजा जा सकता, इसलिए मैंने आपको अपना तिमाही पत्र[१] भेजनेका विचार त्याग दिया है।

१५ मई, सोमवार

बैंकर[२] आज इस वॉर्डमें लाये गये। सुपरिन्टेन्डेंटको एक व्यक्तिगत पत्र लिखा कि मेरी नारंगियोंमें फिरसे वृद्धि करना मुझे अच्छा नहीं लगा तथा उनसे कहा कि वे नारंगी, रोटी तथा अतिरिक्त दूध देना बन्द कर दें।

१६ मई, मंगलवार

श्री ग्रिफिथकी[३] ओरसे उनके हेड क्लर्क, श्री जैकब मुझेसे मिलने और बातचीत करने आये। सुपरिंटेंडेंटन नारंगियोंकी संख्या कम करनेसे मना कर दिया और बताया कि मुझे तो आपको नौ नारंगी देनेके आदेश हैं। "जो द्वेष, उपहास और गालियोंको पसन्द करने के कारण सत्यसे पीछे हट जाते हैं वे गुलाम हैं। दो या तीन आदमियोंके साथमें भी जो सत्यकी हिमायत करनेका साहस न करें वही गुलाम हैं।

—लावेल
('टॉम ब्राउन्स स्कूल डेज' से)

१७ मई, बुधवार

'टॉम ब्राउन्स स्कूल डेज' समाप्त की। उसके बहुतसे भाग बड़े सुन्दर हैं। 'ईसाके पवित्र भोजनकी क्रिया करनेका अर्थ यह नहीं कि जो तंगीमें हो उसे केवल कुछ दे दिया जाये; उसका अर्थ यह है कि हमारे पास जो हो उसमें से उसे हिस्सा दिया जाये। दाताकी भावनाके बिना दान व्यर्थ है। दानके साथ जो अपना तन-मन भी देता है वह तीन आदमियोंका पोषण करता है—अपना, भूखे पड़ोसीका और मेरा।"

—लावेल

२० मई, शनिवार

बेकनकी 'दि विजडम ऑफ दि ऐंशेन्टस्' समाप्त की। बुधवारसे रोटी खाना छोड़ दिया। चार [कच्चा] सेर दूध, दो औंस मुनक्का, चार नारंगी और दो नीबू लेनेका प्रयोग कर रहा हूँ। हाजीको कल कालकोठरीमें भेज दिया गया।।

२८ मई, रविवार

मुगल वंशतक 'हिन्दुस्तानका इतिहास' पढ़ा। मॉरिसका व्याकरण देख गया।

  1. गांधीजीको जेलसे साल-भर में केवल चार पत्र लिखनेकी इजाजत थी।
  2. शंकरलाल बैंकर।
  3. पुलिस सुपरिटेंडेंट।