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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किसी खुश्क जगहपर जाने की सलाह दी गई तो मैं आपके कृपापूर्ण प्रस्तावका ध्यान रखूँगा।

हृदयसे आपका,

श्री वि॰ के॰ सालवेकर

हत्तीखाना रोड

नासिक सिटी
अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८५०१) की फोटो नकलसे।
 

१५२. पत्र : एस॰ ई॰ स्टोक्सको

पोस्ट अन्धेरी
१५ मार्च, १९२४

प्रिय मित्र,

आपका ७ तारीखका पत्र मिला।

जैसा कि आपने समाचारपत्रोंमें पढ़ा होगा, मैं अब समुद्र-तटपर एक विश्राम-गृहमें चला आया हूँ। यह स्थान, जहाँ हम सब रह रहे हैं, बहुत ही सुन्दर है। यह समुद्रके ठीक सामने है और हमें निरन्तर लहरोंका संगीत सुनाई देता रहता है। जाने क्यों, मैं यह महसूस करता हूँ कि मुझे कौंसिल-प्रवेश आदि प्रश्नोंपर अपने विचार यथाशीघ्र व्यक्त कर देने चाहिए। मैं समझता हूँ कि इसके लिए आवश्यक मानसिक श्रम करने लायक पर्याप्त शक्ति मुझमें है। हकीमजी और अन्य मित्रोंसे मिलना तो मैं पहले ही तय कर चुका हूँ। मैं शारीरिक श्रमसे बचनेका यथासम्भव प्रयास कर रहा हूँ, और में नहीं समझता कि मैं इस समय जितना मानसिक श्रम कर रहा हूँ, उससे मुझे कोई नुकसान होगा।[१]

एक अपरिचित मित्रने मुझे लिखा है कि आपने उनसे मुझे कुछ पहाड़ी शहद भेजने के लिए कहा था। उन्होंने कृपा करके मुझे ५ पौंड शहद भेज भी दिया। शहद सचमुच बहुत अच्छा था। बादमें मुझे पता चला कि मोहनलाल पडण्याने[२] आपको मेरे लिए शहद भेजनेको लिखा था। मैं जानता हूँ कि आप मुझपर बहुत मेहरबान रहे हैं। फिर भी मोहनलाल पण्डयाको आपको कष्ट नहीं देना चाहिए था। मुझे उस समय महाबलेश्वरसे अच्छा शहद मिल रहा था। बीमारी के दौरान मुझे उन

  1. स्टोक्सने आग्रह किया था कि देशके हितका खयाल रखते हुए उन्हें विश्राम करना चाहिए। गांधीजीने उन्हें पहले लिखा था कि "कोई भी अन्तिम निर्णय करनेसे पूर्व मेरा यह कर्त्तव्य है कि मैं उन लोगोंका दृष्टिकोण पूरी तरह समझ लूँ जो कौंसिल प्रवेशको हिमायत करते हैं।" यह पत्र उपलब्ध नहीं है।
  2. खेड़ा जिलेके एक कार्यकर्त्ता।