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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तुम्हारी क्या राय है। मैं नहीं चाहता कि तुम इस विषयकी पूछताछ करनेके लिए कोई विशेष प्रयत्न करो। इसमें जल्दीकी कोई बात नहीं। मैं जानता हूँ कि सच्चे कार्यकर्त्ताओंका एक-एक मिनट बड़ा कीमती होता है और उसे स्वयंको अपने सामने के फौरी कामके अलावा और किसी काम में नहीं खपाना चाहिए।

लालाजी २७ तारीखको अन्धेरी पहुँच रहे हैं।

खेद है कि मैं अभीतक कौंसिलोंमें प्रवेश और हिन्दू-मुस्लिम एकता के बारेमें अपने वक्तव्यका मसविदा तैयार नहीं कर पाया हूँ। इसलिए लगता है कि तुम शायद उसे प्रकाशनसे पहले नहीं देख पाओगे। पहले मुझे ऐसी आशा थी, लेकिन अब तुम शायद उसे प्रकाशित रूपमें ही देख पाओगे।

स्नेहाधीन,

सहपत्र :
श्री जयरामदास दौलतराम
हैदराबाद (सिन्ध)

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८५६०) की फोटो नकल तथा सी॰ डब्ल्यू॰ ५१३९ से।
 

२०२. पत्र : च॰ राजगोपालाचारीको

अन्धेरी
शनिवार, २२ मार्च, १९२४

प्रिय राजगोपालाचारी,

यह कागज हाथका बना है। मुझे बताया गया है कि यह मेरे लिए खास-तौरपर तैयार किया गया और छापा गया है। मैं आज पहली बार इसका इस्तेमाल कर रहा हूँ। इस समय सुबह साढ़े तीन बज चुके हैं। रात बारह बजेके बाद मुझे लगभग नींद आई ही नहीं। इसमें आपका भी कुछ हाथ है। कल रात मैंने आपके पुत्र के साथ गपशप की थी। मैं उससे यों ही पूछ बैठा कि वह आपको और आप उसको अंग्रेजी में पत्र लिखते हैं या तमिलमें। उसने जब मुझे बतलाया कि पत्र-व्यवहार अंग्रेजीमें होता है, तो मेरे हृदयको बड़ी चोट पहुँची। इसके बाद हम लोग तमिल भाषाकी सम्भावनाओंके बारेमें विचार करते रहे। युवा रामास्वामीका मत था कि उच्च कोटिके और वैज्ञानिक विचारोंके लिए तमिल उपयुक्त नहीं है। तभीसे मैंने सोचना शुरू किया और अभीतक उसीमें उलझा हूँ। आपसे ही मुझे सबसे ज्यादा उम्मीद है। फिर यह इतनी जबरदस्त त्रुटि क्यों रह गई है? मुझे यह त्रुटि जबरदस्त ही लगती है। यदि नमक अपना खारापन छोड़ दे तो क्या होगा? यदि तमिलनाडूके अच्छे से अच्छे सपूत ही तमिलकी उपेक्षा करने लगें, तो तमिलभाषी जनता क्या करेगी? तब फिर बेचारा रामास्वामी आम जनता के बीच क्या काम कर पायेगा?