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परिशिष्ट

 

(ख) सी॰ आर॰ दासके पत्रका अंश

कलकत्ता
१८ अप्रैल, १९२४

मोतीलालने मुझे एक मसविदा भेजा है जिसमें आपके कौंसिल-प्रवेश सम्बन्धी विचार हैं। मुझे इसमें आपके उठाये गये दो-एक मुद्दोंपर आपसे चर्चा करने की बहुत उत्कण्ठा है। यदि असहयोगका अर्थ बहुत ही शाब्दिक किया जाये तो हो सकता है कि असहयोग के सवालपर आपके विचार ठीक हों। लेकिन अहिंसाके प्रश्नपर मैं आपसे सहमत नहीं हूँ। मैं सिद्धान्त रूपमें अहिंसा में विश्वास रखता हूँ और यह बहुत ही दुःखजनक है कि डाक्टर मुझे आपके पास आने और इस पूरे मामलेपर आपसे चर्चा करनेकी इजाजत नहीं देंगे। मैं बड़ी कठिनाईसे यह पत्र लिखवा रहा हूँ। यदि आप अपने विचार तबतक प्रकाशित न करें जबतक मैं आपसे मिलने लायक न हो जाऊँ तो क्या आपको कुछ अधिक असुविधा होगी? हो सकता है कि आपको मेरी बात कुछ बेजा जँचे, किन्तु मुझे लगता है कि यदि दिल्लीका समझौता अचानक उलट-पुलट जाये तो फिर सारा देश सैद्धान्तिक चर्चामें लग जायेगा, जिससे बड़े काम में बहुत अधिक बाधा पड़ जायेगी। मुझे यहाँ इलाजके लिए २३ तारीखतक रहना है और उसके बाद दार्जीलिंग जाने और वहाँ कमसे कम एक महीना रहनेका विचार है।

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८७४०) की फोटो-नकलसे।