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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और खुद आप भी जानते-समझते हैं कि आपके स्वास्थ्य लाभ के लिए अत्यावश्यक है । इसे मैं राष्ट्रीय विपत्तिके अतिरिक्त अन्य कोई संज्ञा नहीं दे सकता ।

मैं आपके साथ पूरी स्पष्टवादितासे काम लूंगा, चाहे आप नाराज ही क्यों न हो जायें । मैं आपसे बिलकुल खरी बात कह देना चाहता हूँ कि आप इस समय जो काम कर रहे हैं वह अभी कुछ दिनोंतक रुका रह सकता है और यदि वह बिलकुल किया ही न जाये और यदि उसके बदले एक या दो महीने में भी हमें अपना गांधी पूर्णतः स्वस्थ होकर मिल जाये तो राष्ट्रकी जरा भी हानि नहीं होगी । मेरा बस चले तो मैं कुछ समयके लिए भारतसे आपका सारा सम्पर्क तुड़वा दूँ, बिलकुल पूरी तरहसे, और आपको ऐसी लम्बी समुद्री यात्रापर भेज दूं जहाँ आपको छः सप्ताहतक कहीं भी भूमिका दर्शन ही न होने पाये । आप कमसे कम लंकाकी यात्रा तो कर ही सकते हैं। वहाँ आपका सारा वातावरण बदल जायेगा । आपकी अनुपस्थिति में, आपकी सारी चिट्ठी-पत्रियाँ आश्रममें ही रख ली जायें। लेकिन इस लहजे में लिखते जाने से कोई लाभ नहीं। मुझे तो लगता है कि मैं आपसे अपनी बात मनवा ही नहीं सकता और हम सिवाय इसके कुछ कर ही नहीं सकते कि हाथपर-हाथ धरकर देखते रहें कि भविष्य क्या दिखाता दिखलाता है। लेकिन मैंने एक बात अपने तई तय कर ली है, वह यह कि आप इस समय जो आत्मघाती काम कर रहें हैं मैं उसमें सहभागी नहीं बनूंगा, जबतक आप काफी स्वास्थ्य-लाभ नहीं कर लेते तबतक और अधिक पत्र-व्यवहार या बातचीत करके आपकी परेशानी नहीं बढ़ाऊँगा, भले ही काम कितना ही फौरी क्यों न हो ।

आपका पोस्टकार्ड[१] मुझे शायद इलाहाबाद पहुँचनेपर मिलेगा । मैं परसों रात वापस जा रहा हूँ । यदि मैं समझता कि मेरे मिलनेका कुछ उपयोग होगा तो मैं एक दिनके लिए साबरमती भी पहुँच जाता । लेकिन मुझे अपनी यात्रासे कोई लाभ नहीं दिखाई देता और इसलिए मैंने उसका विचार छोड़ दिया है। फिर भी मैं आपसे एक प्रश्न पूछता हूँ। यदि मैं आपसे कहूँ कि आप इलाहाबादसे पाँच मीलकी दूरी-पर गंगातटपर स्थित मेरे एक मित्रकी वाटिका में आकर चन्द सप्ताह रहें तो क्या आप मुझे पागल करार देंगे ? वाटिका पूरी तरहसे मेरे ही हाथमें है । आपके स्वास्थ्य-लाभके लिए समुद्री यात्राका एक यही विकल्प मुझे सूझ रहा है ।

हृदयसे आपका,
मोतीलाल नेहरू

हस्तलिखित अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ९००४) की फोटो-नकलसे ।

  1. १. उपलब्ध नहीं है ।