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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ही कृति है। कांग्रेस अथवा शिक्षितवर्गने देशकी बहुत सेवा की है। शिक्षितवर्गसे मेरा जो मतभेद है, उसके कारण मैं उसकी सेवाओंको नहीं भुला सकता। मेरी दृष्टिसे तो मुझे शिक्षितवर्गको साथ रखकर ही कांग्रेसको ग्रामवासियोंकी संस्था बनानेका प्रयत्न करना चाहिए। जबतक हम स्वयं शरीरश्रम करके कांग्रेसमें सम्मिलित न होंगे तबतक कांग्रेसमें गाँवोंके लोगोंका सच्चा प्रतिनिधित्व नहीं हो सकेगा। किन्तु मैं यह बात शिक्षितवर्गको नहीं समझा सका हूँ। कुछ थोड़े-से व्यक्ति इस बातको समझ गये हैं, किन्तु पूरा वर्ग तो इसे नहीं समझा है। मुझे धीरज रखकर शिक्षितवर्गको कांग्रेसमें सम्मिलित करनेका मार्ग जितना सरल किया जा सके उतना सरल कर देना चाहिए। मैं अपना दायित्व देशबन्धुके जीवित रहते हुए इतना नहीं समझता था। वे और मोतीलालजी शिक्षितवर्ग और मेरे बीच कड़ीके समान थे। उनमें से एकका निधन होनेसे मोतीलालजीकी परेशानीको समझना मेरा स्पष्ट धर्म हो गया है।

मैं देखता हूँ कि शिक्षितवर्गने हाथ-कता सूत खरीद कर देना भी बोझ माना है, क्योंकि उन्हें सूत कातनेमें श्रद्धा है ही नहीं। इसका परिणाम यह हुआ है कि कांग्रेसमें दम्भ और असत्यका प्रवेश हो गया है। वही सूत अलग-अलग लोगोंने चन्देमें दिया, ऐसा भी हुआ है। इस अनर्थके होनेका भय मेरे सम्मुख बेलगाँवमें ही प्रकट किया गया था। किन्तु मैंने उनकी परवाह नहीं की थी। मैंने यह मान लिया था कि नियमको तो सभी मानेंगे और कोई भी असत्याचरण न करेगा। किन्तु मेरा यह अनुमान झूठा निकला। इसलिए मुझे लगता है कि सूत खरीदकर देनेकी धारा जरूर रद्द की जानी चाहिए। मुझे पण्डितजी और दूसरे स्वराज्यवादियोंने बताया था कि स्वराज्यदल और मेरे बीच जो समझौता[१] हुआ है उसके कारण स्वराज्यवादी इस नियमको रद्द करवानेकी इच्छा रखते हुए भी एक वर्षतक उसको रद्द करनेकी माँग नहीं कर सकते। इसलिए मैंने निश्चय किया है कि मैं उनको इस समझौतेसे मुक्त कर दूँगा; लेकिन मैं स्वयं जैसा परिवर्तन वे कराना चाहते हैं, उससे सहमत न होऊँगा। मैं उनको इस आशयका पत्र भी लिख चुका हूँ।

मुझे यह मालूम हुआ है कि सब स्वराज्यवादी खरीदकर सूत देनेके बजाय पैसा देनेकी पुरानी प्रथाको फिर बहाल कराना चाहते हैं। सबका निश्चय यह जान पड़ता है कि जिन्हें अपना श्रम लोगोंको देना है, उनको कांग्रेसमें स्थायी रूपसे स्थान दिया जाये। मुझे तो इससे बहुत सन्तोष हुआ। मैं इतनी सहिष्णुताका स्वागत करता हूँ। इसका अर्थ यह हुआ कि कांग्रेसमें सूत कताईका स्थान सदाके लिए रहा। अब यह देखना है कि ऐसे श्रद्धालु सूत कातनेवाले कितने निकलते हैं। यदि अखिल भार तीय कांग्रेस कमेटी यह परिवर्तन[२] कर दे तो सूत कातनेवालोंकी परीक्षा हो जायेगी।

मताधिकारकी धाराका दूसरा भाग खादी पहननेके नियमके सम्बन्धमें है। अधिकांश स्वराज्यवादी इस शर्तको हटाना नहीं चाहते। यदि शिक्षितवर्ग इस शर्तका सचाईसे पालन कर सके तो मैं इसे हिन्दुस्तानका परम सौभाग्य समझूँगा। अभीष्ट यह

  1. गांधी-नेहरू-दास समझौता, जिसकी पुष्टि बेलगाँव कांग्रेसमें की गई थी
  2. सितम्बरमें होनेवाली बैठकमें।