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पत्र : जितेन्द्रनाथ कुशारीको

आगे बढ़कर सहायता करें तो पुरुष तो सहायता करेंगे ही। इसलिए मैं स्त्रियोंसे स्वराज्यकी नहीं, रामराज्य की चर्चा करता हूँ। इस रामराज्यका सम्बन्ध सिर्फ देशके प्रशासनसे ही नहीं है। उसके लिए कुछ दूसरे सुधार भी नितान्त आवश्यक है और जिन चार चीजोंकी मैने चर्चा की है, उनमें वे सब आ जाते है। इसीलिए सिवाय इसके कि ऐसा करना आपका धर्म है, और कोई लालच आपके सामने नहीं रखना चाहता हूँ। इससे आपको भी और गाँवों में रहनेवाली आपकी बहनोंको भी लाभ होगा।

हम अपने चरित्रबलसे ही अपने धर्मको रक्षा कर सकेंगे। चरित्रबलसे ही हम संसारकी भी रक्षा कर सकते है। आप इस दिशामें मेरी जितनी सहायता कर सकते है, उतनी कर रहे हैं। आपको ऐसा करना भी चाहिए। ईश्वरसे मेरी नित्य यही प्रार्थना है कि मैं सदैव इसका योग्य पात्र सिद्ध होऊँ।

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट, ९-१०-१९२५
 

१५८. पत्र : जितेन्द्रनाथ कुशारीको

यात्राके दौरान
३ अक्तूबर, १९२५

प्रिय भाई,

महीना-भरसे ऊपर हो गया, आपने मुझसे इस विषयमें कुछ प्रश्न पूछे थे कि कलकता विश्वविद्यालयसे इतनी मान्यता प्राप्त कर लेना ठीक रहेगा या नहीं जिससे आप अपने यहाँ ऐसे लड़कोंको भी ले सकें जो उस विश्वविद्यालयकी परीक्षाओंमें बैठना चाहते हों। खुद मेरी राय तो इसके खिलाफ है। मुझे परीक्षाओंका यह मोह पसन्द नहीं है। इस मोहसे हमारे नौजवानों को मानसिक तथा शारीरिक, दोनों दृष्टियोंसे खोखला बना दिया है। और कोई कारण न भी हो तो सिर्फ इसी कारणसे मैं चाहूँगा कि राष्ट्रीय संस्थाएँ अपने निश्चयपर दृढ़ रहें और अपने सहज गुणोंके बलपर ही प्रगति करें। मैं तो चाहूँगा कि आत्माका हनन करनेवाली इस परीक्षा पद्धतिके खिलाफ जाब्तेके साथ विद्रोह किया जाये। लेकिन आप जिन परिस्थितियोंमें पड़े हुए हैं, उनमें आपको क्या करना चाहिए, इसका निर्णय तो सबसे अच्छी तरह आप ही कर सकते हैं और विश्वविद्यालयोंकी उपाधियोंके मोहसे अगर आपको भी उतनी ही चिढ़ नहीं है, जितनी मुझे है तो फिर आप जैसी सीमित मान्यताकी बात कह रहे हैं, वैसी मान्यता बेहिचक प्राप्त करें। मेरा स्वभाव एक तरह का है; आपका या और लोगोंका स्वभाव कुछ और तरहका हो सकता है। इसलिए यह जरूरी नहीं कि जो चीज मुझे बुरी लगे वह आपको अथवा और लोगोंको भी बुरी ही लगे। इसलिए मैं तो यही चाहूँगा कि आप मेरे मतके अनुसार तभी चलें जब यह आपके मनको इतना जँचता हो कि भले ही मान्यताके अभावमें आपके स्कूलमें सिर्फ बीस या इससे भी कम विद्यार्थी रह जायें किन्तु