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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ली है, उसके सहारे जूझना है। यदि हम सच्चे रहेंगे तो कुटिल वक्र राजनीति भी सीधी हो जायेगी ।

जब ट्रान्सवालको उत्तरदायी सत्ता मिल गई तब उत्तरदायी विधानसभाका पहला काम हुआ बजट पास करना और दूसरा हुआ इस खूनी विधेयकको कानूनका रूप देना । उसने इस कानूनकी एक धारामें केवल तारीखका बदलाव छोड़कर, जिसे पुरानी हो जानेके कारण बदलना जरूरी था, २१ मार्च १९०७ की एक ही बैठकमें वह जैसा पहले बनाया गया था, उसी रूपमें पूराका-पूरा पास कर दिया गया। एक-दो शब्दों- का जो सामान्य परिवर्तन किया गया उसका कानूनकी कठोरता से कोई सम्बन्ध नहीं था। कठोरता तो जैसी थी वैसी ही कायम रही और कानूनका रद होना तो स्वप्नकी- सी बात जान पड़ने लगी । हिन्दुस्तानी कौमने अपनी परम्पराके अनुसार प्रार्थनापत्र आदि दिये, किन्तु तूतीकी इस आवाजको कौन सुनता ? कानून १ जुलाई, १९०७ से लागू किया गया । और भारतीयोंको अपने परवाने ३१ जुलाईतक ले लेने थे। कौम- को इतनी मोहलत देनेका कारण ट्रान्सवाल सरकारकी मेहरबानी नहीं थी; बल्कि उसे इस कानूनपर नियमके अनुसार साम्राज्य सरकारसे स्वीकृति भी लेनी थी और इसमें कुछ समय अवश्य लगता । फिर उसे उसके परिशिष्टके अनुसार पत्रक, पुस्ति- काएँ, परवाने और अन्य कागज तैयार करने थे और जगह-जगह परवाना दफ्तर खोलने थे। इसके लिए भी वक्त देना जरूरी था। इसलिए ट्रान्सवाल सरकारने यह अवधि अपनी सुविधाकी दृष्टिसे ही रखी थी ।

अध्याय १६

अहमद मुहम्मद काछलिया

जब हमारा शिष्टमण्डल इंग्लैंड जा रहा था तब दक्षिण आफ्रिकामें रहे हुए एक अंग्रेज यात्रीने ट्रान्सवालके कानूनकी बात मेरे मुँहसे सुनकर और शिष्टमण्डलके इंग्लैंड जानेका कारण जानकर कहा, अच्छा, आप लोग 'कुत्तेका पट्टा' (डॉग्स कॉलर) बँधवाने से इनकार करना चाहते हैं।' इस अंग्रेजने ट्रान्सवालके परवानेको यह नाम दिया था। वह यह कहकर 'पट्ट 'के बारेमें अपनी सहमति और हिन्दुस्तानियोंके प्रति अपना तिरस्कार सूचित करना चाहता था या हमारे प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त करना चाहता था, यह बात उस समय मेरी समझमें नहीं आई और आज भी जब मैं उस घटनाका उल्लेख कर रहा हूँ, मैं इस सम्बन्धमें कोई निश्चय नहीं कर सका हूँ। हम किसी आदमीकी बातका ऐसा अर्थ न करें जिससे उसके प्रति अन्याय हो, यह एक अच्छी बात है। इस दृष्टिसे मैं यही क्यों न मानूं कि स्थितिकी यथा- थंताको प्रकट करनेवाले बोधक वे शब्द उस अंग्रेजने अपनी सहानुभूति व्यक्त करनेके लिए ही कहे थे। एक ओर ट्रान्सवालकी सरकार हमारे गलेमें यह 'कुत्तेका पट्टा'

१. देखिए खण्ड ६, पृष्ठ ४०३ पर दिये गये विवरणके अनुसार अध्यादेश २० मार्चको विधान सभामें पेश हुआ और २२ को विधान परिषद् द्वारा पास कर दिया गया ।

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