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११६. तारः तैयबको
[डबैन]
 
फरवरी ९, १९०१
 

सेवामें

तैयब

मारफत गुल

केपटाउन


केन्द्रीय समितिको जोहानिसबर्ग व प्रिटोरियाकी भारतीय दूकानों और सम्पत्तिकी जानकारी चाहिए। क्या आपको कुछ जानकारी है? है, तो ठीक-ठीक बताइए क्या दूकानदारोंकी संख्या और उनकी सम्पत्तिके बारेमें अपना अन्दाज भी बताइए। आपसे नाम माँगनेवाले अफसरका नाम सूचित कीजिए।

[गांधी
 

[अंग्रेजीसे]

साबरमती संग्रहालय, एस० एन० ३७७३ ।

११७. अकाल-निधि'
१४, मक्युरी लेन
 
डर्बन
 
फरवरी १६, १९०१
 

प्रिय महोदय,

उपनिवेशमें संगृहीत अकाल-निधिको अब चूंकि बन्द कर दिया गया है, इसलिए शायद आपको यह बता देना अच्छा होगा कि इसका प्रारम्भ कैसे हुआ था। जब यहाँके भारतीय समाजमें इस बातको लेकर हलचल मच रही थी कि दक्षिण आफ्रिकामें वर्तमान स्थितियोंके बावजूद सन् १८९७ की भाँति प्रयत्न करना सम्भव होगा या नहीं, तभी वाइसरायका लन्दनके मेयरके नाम और अधिक सहायताकी माँगका पत्र स्थानीय समाचारपत्रोंमें प्रकाशित हुआ। और लगभग उसी समय नेटालके कलकत्ता-स्थित एजेंटने भारतीय प्रवासियोंके संरक्षकसे यह प्रार्थना की कि वे गिरमिटिया भारतीयोंसे चन्दा इकट्ठा करें। इससे हम सजग हुए और भारतीय समाजकी ओरसे परमश्रेष्ठ गवर्नरके पास पहुंचे ताकि उनका संरक्षण प्राप्त हो । उन्होंने बड़ी खुशीके साथ इस प्रकार निर्मित निधिका संरक्षक बनना स्वीकार कर लिया और २० पौंड चन्दा देकर चन्दा-सूचीमें सर्वप्रथम अपना नाम लिखानेका वादा किया। नेटालके भूतपूर्व

१. यह पत्र १५-३-१९०१ के इंडिया तथा १६-३-१९०१ के गुजराती पत्र मुंबई समाचारमें छपा था, और आम तौरपर सभी पत्रोंको भेजा गया था।


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