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प्रवासी विधेयक

खण्ड ४ के उपखण्ड 'च' के मातहत मिलनेवाले अधिकारके लिए खण्ड ३२ के अनुसार यह जरूरी होना कि अर्जदार लगातार तीन वर्षसे नेटालका बाशिन्दा हो ।

लगातार कमसे-कम पाँच वर्ष उपनिवेशकी सेवा कर लेनेपर भी गिरमिटिया भारतीय मजदूरोंका यहाँके निवासीको मिलनेवाले अधिकारोंसे वंचित रखा जाना ।

अब आपके प्रार्थी ऊपर लिखी धाराओंकी क्रमानुसार चर्चा करेंगे :

वर्तमान कानूनके अमलके बारेमें डर्बनके प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिकारीके पिछले विवरणके अनुसार शैक्षणिक कसौटीपर खरे उतरनेपर केवल एक सौ पन्द्रह एशियाइयोंको उपनिवेशमें प्रवेश मिल सका है। इस संख्याके बावजूद इस अधिकारीने सुझाया है कि शैक्षणिक कसौटी और ऊँची कर दी जाये। इस अधिकारीके प्रति आदर रखते हुए भी आपके प्रार्थी निवेदन करना चाहते हैं कि इस परीक्षाके अनुसार प्रवेश पानेवालोंकी नगण्य संख्या शैक्षणिक कसौटी बढ़ानेकी जरूरत प्रकट नहीं करती। वास्तवमें प्रवासी प्रतिबन्धक अधिकारीने अपने विवरणके प्रारम्भमें जो शब्द कहे हैं उनसे प्रकट होता है कि कानूनने बहुत सन्तोषजनक काम किया है और जिस हेतुसे वह बनाया गया था उसमें वह बहुत बड़ी हदतक सफल हुआ है। फिर भी यदि माननीय सदस्योंकी राय यही हो कि शैक्षणिक कसौटी बढ़ाई जानी चाहिए तो आपके प्रार्थी फिर वही प्रार्थना करना चाहते हैं, जो इस कानूनके पेश होते समय की गई थी। वह है कि, शैक्षणिक कसौटीमें भारतकी प्रधान भाषाओंको भी शामिल कर लिया जाये। इसके बाद यदि सामान्य रूपसे सब दिशाओंमें कसौटीका मानदण्ड बढ़ा दिया जाये तो उसे आपके प्रार्थी खुशीसे स्वीकार करेंगे । यहाँपर हम यह भी बता दें कि भारतमें करोड़ों आदमी निरक्षर हैं । अतः कानूनके अनुसार उनका प्रवेश तो फिर भी निषिद्ध रहेगा । किन्तु अगर कानूनमें इतना परिवर्तन कर दिया गया तो उसका स्वरूप भारतीयोंके लिए अपमानजनक नहीं रह जायेगा ।

वयस्कताकी उम्र १६ वर्ष कर देना उपनिवेश में प्रवेश पानेके हकदारों, खासकर भारतीयोंके लिए अत्यन्त कष्टकर होगा । माननीय सदस्य जानते हैं कि जबतक भारतीयोंके बच्चे पूरे इक्कीस वर्षके नहीं हो जाते, उन्हें माता-पितासे अलग नहीं किया जाता। इसलिए उपनिवेशमें बसे हुए भारतीयोंके लिए सोलह वर्षसे कम उम्रके बच्चोंको अपनेसे अलग करनेका विचार करना भी बहुत कठिन बात होगी । भारतमें कुटुम्बके बन्धन कितने दृढ़ होते हैं, यह बताना कदाचित् आवश्यक नहीं है।

आपके प्रार्थियोंका अनुमान और विश्वास है कि आगन्तुक-परवानेके अर्जदारका किसी अधिकारीके सामने आवश्यक रूपसे उपस्थित होना तो भूलसे ही कहा गया है। क्योंकि, अर्जदार तो कहींका भी निवासी हो सकता है। अतः यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि हुकूमत उपनिवेशके बाहर सर्वत्र ऐसे अधिकारी नियुक्त कर देगी। इसलिए जबतक सरकार उपनिवेशके बाहर सर्वत्र ऐसे अधिकारियोंकी नियुक्ति नहीं कर देती, तबतक, स्पष्ट है कि, परवानोंके नियमके अधीन नियुक्त अफसरोंके सामने अर्जदारोंकी उपस्थिति सदा सम्भव नहीं है । इसलिए हमारा सुझाव है कि प्रवासी अधिकारियोंके सम्मुख अर्जदारके मुखत्यारोंकी उपस्थिति पर्याप्त मान ली जाये ।

अबतक उपनिवेशका पूर्व-निवासी माना जानेके लिए किसी भी अर्जदारका यहाँ लगातार दो वर्षका निवास काफी समझा जाता था । प्रार्थियोंकी नम्र राय तो यह है कि यह अवधि भी बहुत अधिक है । परन्तु अब अगर इसे बढ़ाकर तीन वर्ष कर दिया गया तो इससे बहुतसे भारतीय लौटकर नेटाल नहीं आ सकेंगे, यद्यपि यहाँ उनका व्यापार तथा अन्य सम्बन्ध कायम है। कितने ही व्यक्तियोंको तो इससे बहुत भारी हानि होगी ।