टिप्पणियाँ ४७९ होते। उसमें मैसूरमें हो रहे कामके कुछ सुन्दर चित्र हैं । यहाँ अगर हम स्वर्गीय श्री विलियम विलसन इंटरके इंडियन एम्पायर ग्रन्थसे उनके भारतीय कलापर प्रकट किये गये विचारोंका एक उद्धरण दें तो अनुचित नहीं होगा : ग्वालियरकी प्रासाद-स्थापत्यकला, भारतीय मुसलमानोंकी बनाई दिल्ली और आगराकी मस्जिदें और मकबरे एवं दक्षिण भारतके प्राचीन मन्दिर रेखांकनके सौंदर्य और सजा- वटको समृद्धिकी दृष्टिसे अप्रतिम हैं। आगराके ताजमहलको देखकर श्री हेबरका यह उद्गार अक्षरशः सही प्रतीत होता है कि उसके बनानेवालोंने महामानवोंकी भाँति उसकी कल्पना की और जौहरियोंकी भाँति उसे कार्यान्वित किया। अहमदाबादकी संगमर्मरकी खुली खिड़कियाँ और परदे कुशल सजावटके ऐसे नमूने पेश करते हैं, जो बौद्ध-कालीन गुफाओंमें बने मठोंसे लेकर बादकी हर भारतीय इमारतमें पाये जाते हैं। उससे यह भी प्रकट होता है कि भारतके हिन्दू कारीगरोंने कितने लचीलेपनके साथ भारतीय सजावटको मुसलमानी मस्जिदोंकी स्थापत्य-सम्बन्धी आवश्यकताओंके अनुकूल बना लिया । आज इंग्लैंडमें हम जिस सजावटकी कलाका दर्शन करते हैं वह अधिकांशमें भारतके नमूनों और आकृतियोंसे ली गई है। कार्ला और अजन्ताके गिरि-मन्दिरोंके अप्रतिम चित्र- फलक, पश्चिमी भारतकी संगमर्मर और लकड़ीकी खुदाई तथा पच्चीकारी और कश्मीरी वस्त्रोंपर की जानेवाली कढ़ाईमें आकृतियों और रंगोंका सुन्दर समन्वय -- इन सबने इंग्लैंडकी कलाभिरुचि पुनर्जीवित करनेमें योग दिया है। आज भी यूरोपकी प्रदर्शनियोंमें भारतकी वास्तविक देशी नमूनोंपर बनी कलाकृतियोंको सर्वोच्च सम्मान प्रदान किया जाता है । [ अंग्रेजीसे ] इंडियन ओपिनियन, १७-९-१९०३ ३४०. टिप्पणियाँ ' २१ सितम्बर १९०३ तककी स्थिति जोहानिसबर्ग सितम्बर २१, १९०३ अगस्त ४ को जो लम्बा समुद्री तार भेजा था, उसमें वर्णित मामलों में से किसीमें भी अभीतक सहायता नहीं मिली। गैर-शरणार्थी ब्रिटिश भारतीय, जिनकी व्यापारिक कार्योंके लिए आवश्यकता है, उपनिवेशमें प्रवेश नहीं कर पाते और न सब शरणार्थियोंको अभीतक परवाने मिले हैं। यद्यपि परवानोंके बदलनेका समय करीब आ रहा है, तथापि यह परवाने देनेकी समस्या अभीतक जहाँकी-तहाँ है । जिन लोगोंके पास इस समय परवाने हैं, परन्तु जो लड़ाई छिड़नेके १. यह वक्तव्य दादाभाई नौरोजीके पास भेजा गया था। उन्होंने इसे भारतमंत्री को भेजा । इंडिया ने इसे अपने १६-१०-१९०३ के अंकमें प्रकाशित किया था । २. " तार : ब्रिटिश समितिको", अगस्त ४, १९०३ । Gandhi Heritage Portal
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/५२१
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