राजनीतिक नैतिकता ४९७ ऐसी ही परिस्थितियोंमें ब्रिटिश भारतीयोंको परवाने दे दिये गये थे, यद्यपि ये लोग सम्बन्धित जिलोंमें पहले कभी व्यापार नहीं करते थे; और इन परवानोंपर कभी आपत्ति भी नहीं की गई थी । प्रस्तुत प्रकरणमें जो आपत्ति की गई वह तो मजिस्ट्रेटकी सनकमात्र थी । रिपोर्ट में यह भी लिखा जा सकता था कि, श्री सुलेमान इस्माइलके प्रति न्याय भी संयोगवश ही हुआ था, क्योंकि उनका परवाना नया नहीं किया गया। इसका सरकारी तौरपर कारण यह बताया गया कि उन्हें भारतीय बस्तीमें चला जाना चाहिए। सौभाग्यसे उन्होंने यह बता दिया कि इस समय रस्टेनबर्गमें कहीं कोई अलग भारतीय बस्ती है ही नहीं । इस प्रकार घिरावमें आनेपर सरकारके सामने परवाना नया करनेके सिवा कोई चारा नहीं रहा । परमश्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नरने अनुभव किया कि इस आदमीके साथ सचमुच अन्याय हुआ है। इतना ही नहीं, परवाना खत्म होनेपर व्यापार करनेके जुर्म में मजिस्ट्रेटने उनपर जो जुर्माना किया था, वह कृपा करके उन्हें वापिस दे दिया गया । इन दोनों दुःखजनक मामलोंकी चर्चा हम नहीं करना चाहते थे। परन्तु चूंकि मर्क्युरी में वह विवरण प्रकाशित कर दिया गया, इसलिए हमारा कर्तव्य हो गया कि उसका प्रतिवाद किये बगैर हम खामोश न बैठे रहें। इस सारे दुःखजनक प्रकरण और सरकारी जुल्मके बीच केवल एक बात ऐसी थी, जिसपर मनुष्यको कुछ सन्तोष हो सकता है। वह यह कि, यद्यपि प्रत्येक जगहके अधिकारियोंने आपसमें पूरी तरह सलाह करके अपनी तरफसे शक्तिभर यत्न किया कि अर्जदारको न्याय न मिले, फिर भी परमश्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नर सर आर्थर लालीने दोनों मामलोंकी खुद जाँच की और मंद गतिसे ही सही, पीड़ित पक्षोंके साथ न्याय किया । ट्रान्सवालमें अधिकारियोंकी भावना कैसी है, यह इन दो मामलोंसे प्रकट हो जाता है। इससे यह भी प्रकट होता है कि एशियाइयोंके लिए एक अलग महकमा रखनेसे ब्रिटिश भारतीयोंको न्यूनतम न्याय मिलना भी कितना मुश्किल है। इस अन्यायकी तीव्रता तब और भी अधिक वढ़ जाती है, जब हम श्री चेम्बरलेनके उस आश्वासनको याद करते हैं, जो उन्होंने प्रिटोरिया में हमारे शिष्टमण्डलकी इस तरहकी आशंकाओंके उत्तरमें दिया था। उन्होंने कहा था कि उपनिवेशपर अंग्रेजोंका अधिकार होनेके बाद दिये गये परवाने कभी वापस नहीं लिये जायेंगे । वे इंग्लैंडके वातावरण से आये थे, अतः उनके लिए तो एक ब्रिटिश अधिकारीका आश्वासन उतना ही मूल्य रखता था, जितना कि एक बैंकका चेक । फिर, इसपर तो सरकारी तौरपर उनके दस्तखत भी थे। इस दुःखदायी प्रकरणको समाप्त करनेसे पहले हम बता दें कि इस लेखमें हमने जो भी कुछ कहा है, उन दस्तावेजोंके आधारपर कहा है, जो हमारे पास मौजूद हैं। इतनेपर भी अगर किसीको लगे कि हमारी भाषा कड़ी हो गई है, तो हम लाचार हैं; क्योंकि इन प्रकरणोंसे हमारे दिलको ऐसी ही भारी चोट पहुँची है। [ अंग्रेजीसे ] इंडियन ओपिनियन, १-१०-१९०३ १. देखिए " अभिनन्दनपत्र : चेम्बरलेनको", जनवरी ७, १९०३ । Gandhi Heritage Portal
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/५३९
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