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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/२०९

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पत्र: के० राजगोपालाचारीको

उसे लेनेकी जिसमें हिम्मत हो, वह उसे ले ले। इस तरह अधिकारीका निर्णय हो जाता है और सत्यकी नींव भी दृढ़ हो जाती है। मेरी गुनियाका माप परिस्थितिके अनुसार नहीं बदलता। यदि लोग उस मापमें ठीक नहीं बैठते तो उसमें न तो मापका दोष है, न मेरा और न लोगोंका। परन्तु ये सब बातें तो व्यर्थ हैं। आप मेरी बात सुन अवश्य लें; किन्तु करें वही जो स्वयं तय करें। नरहरि सूरतमें रहना चाहें तो रह सकते हैं। खादीके विषयमें आप और वे जितना चाहें उतना आग्रह रखें। आप जब तक मेरे विचारको नहीं बदल पाते तबतक वे जैसे हैं वैसे ही रहेंगे।

मामाने अद्भुत कार्य किया है। उन्हें लिख दें कि यह प्रश्न कृषि और अकृषिका है भी और नहीं भी है। मुझे कृषि अप्रिय नहीं है। परन्तु में उसे अन्त्यज-सेवाका अंग नहीं मानता; इसी कारण मुझे उसके लिए एक पाई भी खर्च करना अखरता है, क्योंकि इस प्रकार हम अपने कार्यक्षेत्रके बाहर चले जाते हैं।

बापू

[ पुनश्च : ]

···मेरे अक्षर न पढ़ सकें तो जब हवाई जहाज चलने लगे, तब इन्हें पढ़नेके लिए मुझे बुला लें। आप यह पत्र नरहरिको भेज सकते हैं। मामाको केवल यही [ सम्बन्धित ] अंश भेजें।

गुजराती पत्र (एस० एन० १९९३३) की माइक्रोफिल्मसे।

१७७. पत्र : के० राजगोपालाचारीको

आश्रम
साबरमती
२० जुलाई, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मैं आपको कठिनाई समझता हूँ। इस समय आश्रम खचाखच भरा है लेकिन यदि आप असुविधायें सह सकते हों तो आप जब कभी आना चाहें जरूर आयें और जितने दिन चाहें रहें।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

श्री के० राजगोपालाचारी

मन्त्री चित्तूर जि० कां० क०

तिरुपति

अंग्रेजी पत्र ( जी० एन० ५६६९) की फोटो-नकलसे ।