पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/२४९

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२२०. पत्र : आनन्दानन्दको

आश्रम
साबरमती
२७ जुलाई, १९२६

भाईश्री ५ आनन्दानन्द,

इसके साथ वेणीलालका पत्र है। शनिवार अथवा रविवारमें जो भी आपको सुविधाजनक हो, उन्हें उस दिन आनेके लिए लिख दें, ताकि यह झगड़ा हमेशाके लिए तय हो जाये। उन्होंने हिसाबकी रकमें लिखकर तैयार रखनेका जो सुझाव दिया है वह मुझे बिलकुल उचित लगता है। मुझे तो रविवारको तीन बजेका समय अधिक अनुकूल होगा।

श्री स्वामी

नवजीवन कार्यालय

अहमदाबाद

गुजराती प्रति (एस० एन० १२२२२) की माइक्रोफिल्मसे।

२२१. पत्र : वीरसुत त्रिभुवनको

आश्रम
साबरमती
मंगलवार, आषाढ़ बदी [ ३ ][१], २७ जुलाई, १९२६

भाईश्री ५ वीरसुत,

आपका पत्र मिला। महाविद्यालय ग्रामसेवक तैयार करने लायक नहीं बना, यह बात सच है। विद्यार्थियोंकी रुचिके विचारसे कौनसे परिवर्तन किये जाने चाहिए, यह निर्णय अभीतक नहीं हो पाया है। स्नातकोंको अध्यापकके रूप में नियुक्त करनेमें भूल नहीं हुई, ऐसी मेरी मान्यता है। आप जैसा सोचते हैं स्नातकोंकी स्थिति वैसी दयनीय नहीं है। प्रत्येक योग्य स्नातक सामान्य रूपसे स्वाभिमानपूर्वक अपनी आजीविका कमा लेता है, यह मैं अच्छी तरहसे जानता हूँ। मैं जो उत्तर देता हूँ वे मेरी दृष्टिसे तो व्यावहारिक होते हैं, लेकिन वे सबके लिए समाधानकारक न हों, मैं यह समझ सकता हूँ। आत्मबलको व्यावहारिक वस्तु माननेवाला और कर भी क्या सकता है? छात्रालयमें विद्यार्थी विलासी हैं, इसमें दोष किसका है? अध्यापक क्या कर

  1. मूलमें २ है, पर आषाढ़ वदी २ क्षय तिथि होनेके कारण मंगलवारको आषाढ़ वदी ३ थी।