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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/३९२

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३७०. पत्र : बी० एस० टी० स्वामीको

आश्रम
साबरमती
१ सितम्बर, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। पवित्र और सरल जीवन बितानेके लिए साबरमती आना आवश्यक तो नहीं है। यह तो प्रत्येक व्यक्ति अपने घरपर भी कर सकता है। इस तरह, आप विवाहसे इनकार कर सकते हैं, और चाहें तो सादे भोजनके अतिरिक्त कुछ न लेना तय कर सकते हैं। आप जल्दी सोने और जल्दी उठनेकी आदत डाल सकते हैं और ईश्वरके स्मरणसे अपने दिनका कामकाज शुरू कर सकते हैं। आप अस्पृश्योंके साथ अपने घरके लोगों-जैसा व्यवहार कर ही रहे हैं। आप वहाँ उस हिन्दी कक्षामें शामिल हो जायें जो हिन्दी प्रचार कार्यालय, ट्रिप्लिकेन द्वारा संचालित है। निस्सन्देह आप चरखा चलाना भी सीख लें और खद्दर पहना करें। मन, कर्म और वचनमें सत्य और औदार्यका अभ्यास करनेके लिए कोई बड़े प्रयासकी आवश्यकता नहीं पड़ती।

हृदयसे आपका,

बी० एस० टी० स्वामी

३/७, कार स्ट्रीट
ट्रिप्लिकेन

मद्रास

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६८०) की माइक्रोफिल्मसे।